জিজ্ঞাসা এর পদ পরিবর্তন
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लालजी ('प्रेम सागर') व सदल मिश्र ('नसिकेतोपाख्यान')- के नाम उल्लेखनीय हैं। भारतेन्दु-पूर्व युग में मुख्य संघर्ष हिन्दी की स्वीकृति और प्रतिष्ठा को लेकर था। इस युग के दो प्रसिद्ध लेखकों- राजा शिव प्रसाद 'सितारे हिन्द' व राजा लक्ष्मण सिंह- ने हिन्दी के स्वरूप निर्धारण के प्रश्न पर दो सीमांतों का अनुगमन किया। राजा शिव प्रसाद ने हिन्दी का गँवारूपन दूर कर-कर उसे उर्दू-ए मुअल्ला बना दिया तो राजा लक्ष्मण सिंह ने विशुद्ध संस्कृतनिष्ठ हिन्दी का समर्थन किया।
भारतेन्दु युग (1850 ई०-1900 ई०) : इन दोनों के बीच सर्वमान्य हिन्दी गद्य की प्रतिष्ठा कर गद्य
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) राष्ट्रभाषा का शाब्दिक अर्थ है- समस्त राष्ट्र में प्रयुक्त भाषा अर्थात आम जन की भाषा (जनभाषा) । जो भाषा समस्त राष्ट्र में जन-जन के विचार-विनिमय का माध्यम हो, वह राष्ट्रभाषा कहलाती है।
(2) राष्ट्रभाषा राष्ट्रीय एकता एवं अंतर्राष्ट्रीय संवाद-सम्पर्क की आवश्यकता की उपज होती है। वैसे तो सभी भाषाएँ राष्ट्रभाषाएँ होती हैं किन्तु राष्ट्र की जनता जब स्थानीय एवं तात्कालिक हितों व पूर्वाग्रहों से ऊपर उठकर अपने राष्ट्र की कई भाषाओं में से किसी एक भाषा को चुनकर उसे राष्ट्रीय अस्मिता का एक आवश्यक उपादान समझने लगती है तो वही राष्ट्रभाषा है।
(3) स्वतंत्रता--संग्राम के दौरान राष्ट्रभाषा की आवश्यकता होती है। भारत के संदर्भ में इस आवश्यकता की पूर्ति हिन्दी ने किया। यही कारण है कि हिन्दी स्वतंत्रता-संग्राम के दौरान (विशेषतः 1900 ई०-1947 ई०) राष्ट्रभाषा बनी।
(4) राष्ट्रभाषा शब्द कोई संवैधानिक शब्द नहीं है बल्कि यह प्रयो