আসলে আপনাদের মাথায় কিছু নেই আপনারা আপনাদের মগজে কিছু নেই আপনারা সামান্য কিছু একটা লেখার জন্য তা পারে না আপনারা না পারলে ডোন্ট আন্ডারস্ট্যান্ড দিস ল্যাঙ্গুয়েজ ছেড়ে দেন কিন্তু একটা জিনিস মাথায় রাখবে কাউকে উপকার করলে সেই উপকার ব্যর্থ যায় না বা চলে যায় না তো এখন আমার একটাই প্রশ্ন যদি আপনারা পারেন তাহলে উত্তর দিন প্রশ্নটা বলছি পথ নিরাপত্তা ও আমরা এই বিষয় নিয়ে একটি প্রবন্ধ লিখে পাঠান প্লিজ
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अब्दुर रहमान, दामोदर पण्डित, ज्योतिरीश्वर ठाकुर, विद्यापति आदि रचनाकारों ने अपनी भाषा को 'अवहट्ट' या 'अवहट्ठ' कहा है। विद्यापति प्राकृत की तुलना में अपनी भाषा को मधुरतर बताते हैं : 'देसिल बयना सब जन मिट्ठा/ते तैसन जम्पञो अवहट्ठा' अर्थात, देश की भाषा सब लोगों के लिए मीठी है, इसे अवहट्ठा कहा जाता है।
प्रमुख रचनाकार : अद्दहमाण/अब्दुर रहमान ('संनेह रासय'/संदेश रासक'), दामोदर पण्डित ('उक्ति-व्यक्ति-प्रकरण'), ज्योतिरीश्वर ठाकुर ('वर्ण रत्नाकर'), विद्यापति ('कीर्तिलता'), रोड कवि ('राउलवेल') आदि।
प्राचीन या पुरानी हिन्दी/प्रारंभिक या आरंभिक हिन्दी/आदिकालीन हिन्दी
मध्यदेशीय भाषा-परंपरा की विशिष्ट उत्तराधिकारिणी होने के कारण हिन्दी का स्थान आधुनिक भारतीय आर्यभाषाओंसंबंधित है। विदित है कि अधिकांश विदेशी यात्री और आक्रान्ता उत्तर-पश्चिम सिंहद्वार से ही भारत आए। भारत में आनेवाले इन विदेशियों ने जिस देश के दर्शन किए वह 'सिंधु' का देश था। ईरान (फारस) के साथ भारत के बहुत प्राचीन काल से ही संबंध थे और ईरानी 'सिंधु' को 'हिन्दू' कहते थे [सिंधु- हिन्दु, स का ह में तथा ध का द में परिवर्तन- पहलवी भाषा प्रवृति के अनुसार ध्वनि परिवर्तन। 'हिन्दु' से 'हिन्द' बना और फिर 'हिन्द' में फारसी भाषा के संबंध कारक प्रत्यय 'ई' लगने से 'हिन्दी' बन गया। 'हिन्दी' का अर्थ है- 'हिन्द का'। इस प्रकार हिन्दी शब्द की उत्पत्ति हिन्द देश के निवासियों के अर्थ में हुई। आगे चलकर यह शब्द 'हिन्द की भाषा' के अर्थ में प्रयुक्त होने लगा।
उपर्युक्त बातों से तीन बातें सामने आती हैं-
(1) 'हिन्दी' शब्द का विकास कई चरणों में हुआ-
सिंधु - हिन्दु - हिन्द + ई - हिन्दी।
(2) 'हिन्दी' शब्द मूलतः फारसी का है न कि हिन्दी भाषा का। यह ऐसे ही है जैसे बच्चा हमारे घर जन्मे और
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प्रमुख रचनाकार : 'हिन्दी' शब्द भाषा विशेष का वाचक नहीं है बल्कि यह भाषा-समूह का नाम है। हिन्दी जिस भाषा-समूह का नाम है उसमें आज के हिन्दी प्रदेश/क्षेत्र की 5 उपभाषाएँ तथा 17 बोलियाँ शामिल हैं। बोलियों में ब्रजभाषा, अवधी एवं खड़ी बोली को आगे चलकर मध्यकाल में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त हुआ।
ब्रजभाषा : प्राचीन हिन्दी काल में ब्रजभाषा अपभ्रंश-अवहट्ट से ही जीवन-रस लेती रही। अपभ्रंश-अवहट्ट की रचनाओं में ब्रजभाषा के फूटते हुए अंकुर को देखा जा सकता है। ब्रजभाषा साहित्य का प्राचीनतम उपलब्ध ग्रंथ सुधीर अग्रवाल का 'प्रद्युम्न चरित' (1354 ई०) हैं।
अवधी : अवधी की पहली