৫। সমার্থক শব্দ লিখা ?
মানুহ; সংগ; পৃথিৱী; সোঁত; স্বর্গ; দেৱ।
Answers
Explanation:
पुढील शब्दांचा योग्य लघुगुरुक्रम लावून मात्र ओळखा: अस्ताव्यस्त.पुढील शब्दांचा योग्य लघुगुरुक्रम लावून मात्र ओळखा:
अस्ताव्यस्त
Impacts of COVID - 19 Lockdown.CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि
क्रिया के मूल रूप को धातु (Root) कहते हैं। विभिन्न काल तथा अवस्थाओं में, तीनों पुरुषों तथा तीनों वचनों में धातु के साथ तिङ् प्रत्ययों को जोड़ा जाता है। समस्त धातुओं को दस गणों (Classes) में बाँटा गया है तथा इन गणों के पृथक्-पृथक चिह्न (विकरण) होते हैं, जिनको तिङ् प्रत्यय से पूर्व धातु में लगाया जाता है। इन गणों के नाम तथा चिहन निम्नलिखित हैं –
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 1
लकार – विभिन्न कालों तथा अवस्थाओं को लकार कहा जाता है। संस्कृत में कुल ग्यारह लकार हात हैं जिनमें से पाँच लकार ही हमारे पाठ्यक्रम में निर्धारित हैं।
(क) लट् लकार (वर्तमान काल, Present Tense) – भवति इत्यादि।
(ख) लङ् लकार (भूतकाल, Past Tense) – अभवत् इत्यादि।
(ग) लृट् लकार (भविष्यत् काल, Future Tense) – भविष्यति इत्यादि।
(घ) लोट् लकार (आज्ञादि, Imperative Mood) – भवतु इत्यादि।
(ङ) विधिलिङ् लकार (विध्यादि, Potential Mood) – भवेत् इत्यादि।
विधिलिङ् का प्रयोग नम्रतापूर्वक आदेश देने, कार्य कराने, सलाह देने, निमंत्रण देने, प्रेमपूर्वक आग्रह तथा सत्कारपूर्वक व्यापार, प्रश्न एवं प्रार्थना आदि अर्थों में होता है। यह ‘चाहिए’ अर्थ को भी प्रकट करता है।
तिङ् प्रत्यय (Tense Suffixes) धातुओं से लकारों के रूप बनाने के हेतु जो प्रत्यय जोड़े जाते हैं उन्हें तिङ् प्रत्यय कहते हैं। तिङ् प्रत्यय लगने पर शब्दों की तिङन्त संज्ञा हो जाती है। तिप् से लेकर महिङ्त क तिङ प्रत्ययों की संख्या अठारह हैं। समस्त धातुओं को अर्थ की दृष्टि से प्रायः परस्मैपद तथा आत्मनेपद-इन दो भागों में बाँटा गया है। कुछ धातुएँ उभयपदी होती हैं। नौ प्रत्यय परस्मैपद के हैं तथा नौ आत्मनेपद के।
उभयपदी क्री, कृ, ह, ज्ञा, ग्रह, शक्; इनमें से केवल दो धातुओं के लट् तथा लृट् लकारों में ही धातु-रूप पाठ्यक्रम में निर्धारित हैं।
पुरुष तथा वचन का भेद दिखलाते हुए तिङ् प्रत्ययों को निम्न तालिका के माध्यम से समझा जा सकता है –
तिङ्, परस्मैपद
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 2
तिङ्, आत्मनेपद
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 3
लकारों के अनुसार तिङ् प्रत्ययों का स्वरूप
विभिन्न लकारों में उपर्युक्त प्रत्ययों का निम्न स्वरूप हो जाता है। जैसे –
तिङ्, परस्मैपद
लट् लकार
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 4
लङ् लकार
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 5
लृट् लकार
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 6
लोट् लकार
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 7
विधिलिङ्ग
(भ्वादि, दिवादि, तुदादि तथा चुरादि गणों में)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 8
(शेष गणों में)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 9
तिङ् आत्मनेपद
लट् लकार
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 10
लङ लकार
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 11
लृट् लकार
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 12
लोट् लकार
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 13
विधिलिङ्
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 14
विशेष –
भ्वादिगण, दिवादिगण, तुदादिगण तथा चुरादिगण की धातुओं के साथ प्रत्येक लकार के उत्तम पुरुष में प्रत्यय से पूर्व आ भी लगता है जैसे-भवामि, भवावः, भवामः, दीव्यामि, दीव्यावः, दीव्यामः, तुदामि, तुदावः, तुदामः, चोरयामि, चोरयावः, चोरयामः इत्यादि।
भू, पठ् आदि सेट् धातुओं के लृट् लकार में धातु के साथ इ (इट्) जुड़ जाता है। जैसे-भविष्यति, पठिष्यति इत्यादि।
पाठ्यक्रम में निर्धारित धातुओं के रूप –
I. (अ) भ्वादिगण-परस्मैपदी धातुएँ
भ्वादिगण की पठ्, भू, पा, गम्, स्था, दृश् तथा घ्रा (परस्मैपदी) धातुओं के रूप निम्नलिखित हैं। ये धातुरूप लट्, लङ्, लोट, विधिलिङ् व लृट् लकारों में ही दिए गए हैं क्योंकि पाठ्यक्रम में ये पाँच लकार ही रखे गए हैं।
भ्वादिगण में तिङ् से पूर्व अ (शप्) विकरण लगता है।
1. पठ् धातु (पढ़ना)
लट् लकार (वर्तमान काल)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 15
लङ् लकार (भूतकाल)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 16
लृट् लकार (भविष्यत् काल)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 17
लोट् लकार (आज्ञादि)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 18
विधिलिङ् (विधि आदि)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 19
2. भू धातु (होना)
लट् लकार (वर्तमान काल)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 20
लङ् लकार (भूतकाल)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 21
लृट् लकार (भविष्यत् काल)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 22
लोट् लकार (आज्ञार्थक)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 23
विधिलिङ् (अनुज्ञा, सलाह देना-लेना)
CBSE Class 11 Sanskrit धातुरूपाणि 24
3. पा (पिब्) धातु (पीना)
पा धातु को लट्, लङ्, लोट् तथा विधिलिङ् में “पिब्’ आदेश हो जाता है किन्तु लुट् में पा ही रहता है। जैसे –
लट् लकार (वर्तमान काल
মানুহ- মানৱ, নৰ, মনুষ্য।
সংগ-লগ, লগৰীয়া, সান্নিধ্য।
পৃথিৱী- ধৰা, ধৰিত্ৰী, বসুমতী, অৱনী, বসুধা, ধৰাতল।
সোঁত- তৰংগ,প্রবাহ, স্রোত, বৈ যোৱা কাৰ্য।
স্বর্গ- সৰগ ,দেবপুৰী,সৰগ, স্বৱগ।
দেৱ- ঈশ্বৰ,দেৱতা, স্বৰ্গৰ অধিবাসী।