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ज्ञानी है तो स्वयं को जान, वही है साहिब से पहचान।।
प्र019 निम्नलिखित में से किसी एक गद्यांश की संदर्भ.प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
झूरह काछी के दोनों बैलों के नाम थे
चौकस, डील में ऊँचे बहुत दिनों साथ रहते.रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने सामने बैठे हुए
हीरा और मोती। दोनों पछाई के थे देखने में सुंदर काम मे नहीं कह सकते।
एक दूसरे को चाटकर.तूंधकर अपना प्रेम प्रकट करने कभी कभी दोनों सींग भी मिला लेते. विग्रह के नाते से नहीं
केवल विनोद के भाक से, आत्मीयता के माप से. जैसे दोस्तो में घनिष्ठता होने ही धौल.षणा होने लगना है।
इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हल्की सी रहती है जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता।
अथवा परित्यक्त चीनी किले से जब हम चलने लगे, तो एक आदमी राहदारी मांगने आया हमने वह
दोनों चिट उसे दे दी। शायद उसी दिन हम थोडला के पहले के आखिरी गांव में पहुंच गए। यहाँ भी सुमति
के जान पहचान के आदमी थे और भिखमंगेरीत भी ठहरने अच्छी जगह मिली। पांच साल बाद हम इसी रास्ट
लौटे थे और मिखमंगे नहीं एक भट यात्री के वेश में घोड़ा पर सवार होकर आए थे. किंतु उस वक्त किसी
में रहने के लिए जगह नहीं दी, और हम गाँव के एक सबसे गरीब झोपड़े में ठहरे थे।
Answers
दिए गए गद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या नीचे की गई है।
दिए गए गद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या नीचे की गई है।संदर्भ - प्रस्तुत गद्यांश मुंशी प्रेमचंद की कहानी " दो बैलों की कथा " से लिया गया है। इन पंक्तियों में मुंशीजी ने दो बैलों के परस्पर प्रेम तथा स्नेह का वर्णन किया है।
व्याख्या - झूरी के पास दो बैल थे , नाम था हीरा तथा मोती। दोनों बैल देखने में सुंदर तथा सुडौल थे।
•साथ रहते रहते दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो गया। वे दोनों साथ में चारा खाते , खेत में हल साथ में जोतते। दोनों एक दूसरे से मूक भाषा में बातें करते थे।
• हम इंसान जानवरों की बोली नहीं समझते परन्तु भगवान ने जानवरों को एक गुण दिया है एक दूसरे की बोली समझने का।
•हीरा मोती एक दूसरे को चाटकर अपना प्रेम व्यक्त करते , कभी कभी सींग भी मिला लेते थे।कभी कानाफूसी करते। इस प्रकार उनमें इतनी घनिष्ठ मित्रता हो गई कि एक मिनट भी एक दूसरे से अलग नहीं होते थे ।