1. (1) आदिकालीन काव्य की चार विशेषताएँ लिखिए। (II) पृथ्वीराज रासो की दो भाषागत विशेषताएँ लिखिए I (III) कबीर की वाणी किस ग्रन्थ में संगृहीत है ? (IV) भक्तिकाल की चार प्रमुख कृतियों का नामोल्लेख कीजिए। (V) भ्रमरगीत से क्या आशय है ? (VI) रसखान के काव्य की दो विशेषताएँ बताइए।
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- विविधतापूर्ण एवं विरोधी काव्य प्रवृत्तियां :- आदिकाल की कविता में सर्वाधिक विविधता दृष्टिगोचर होती है। उस समय चारण कवि वीर रस एवं श्रृंगार रस प्रधान काव्य की रचना कर रहे थे। ... रासो साहित्य परंपरा :- इस काल में वीरता, श्रृंगार व धर्म जैसे विषययों पर रासो काव्य लिखने की परंपरा रही।
- रासो काव्य में जिस भाषा का प्रयोग हुआ है उसे विद्वानों ने डिंगल पिंगल का नाम दिया है। डिंगल राजस्थानी और अपभ्रंश का मिश्रित रूप है। ... दूसरी ओर पिंगल भाषा अपभ्रंश और ब्रज का मिश्रित रूप है। श्रृंगार वर्णन के लिए रासो कवियों ने पिंगल भाषा का ही प्रयोग किया है।
- कबीर की रचनाओं का प्रामाणिक संग्रह है- बीजक । बीजक में कबीर के शिष्यों द्वारा लिपिवद्ध की गयी रचनाओं का संग्रह है ।
- संत काव्य कबीरदास (निर्गुण पंथ के प्रवर्तक) बीजक (1. रमैनी 2. सबद 3. साखी; संकलन धर्मदास)रैदास बानी नानक देव ग्रंथ साहिब में संकलित (संकलन- गुरु अर्जुन देव) सुंदर दास सुंदर विलाप
- 'भ्रमरगीत' शब्द 'भ्रमर' और 'गीत' दो शब्दों के मेल से बना है। 'भ्रमर' छ: पैरवाला एक कीट है जिस का रंग काला होता है। ... इस प्रकार भ्रमरगीत का अर्थ है- उद्धव को लक्ष्य करके लिखा गया 'गान'। कहीं-कहीं गोपियों ने श्रीकृष्ण को भी 'भ्रमर' कहा है।
- भाषागत विशेषताएँ— रसखान ब्रजभाषा के कवि हैं। उनकी भाषा सरल, सुबोध व सहज है। उसमें आडंबर-विहीनता है। अलंकारों का सहज प्रयोग उनके काव्य में हुआ है।
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Answer:1 - वीर एवं श्रृंगार रस 2 - रासों शब्द का प्रयोग
3 - युद्ध वर्णन में सजीवता
4 - प्रामाणिकता में संकोच
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