1.1 अघोलिखित पद्यांश का हिन्दी भाषा में अनुवाद कीजिए-
विजयनगरनरेशस्य कृष्णदेवस्य परमप्रियः मन्त्री तेनालीरानोऽतीवबुद्धिमान
परमकुशलश्चासीत। प्रायः सर्वे मन्त्रिणः तं शत्रुभावेन पश्यान्ति स्म। नापास्य
कृष्णदेवस्य सभायां शिवकुमारः नामकः एको मन्त्री येन केन प्रकार
तेनालीरामस्य पराभवञ्चेच्छति स्म।
केनापि कारणेन विजयनगरनरेशस्य कृष्णदेवस्य देव नगाराधिन नमक
उदयसिंहेन सह शत्रुभावो आसीत्।
do in hindi
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“तदेवार्थमात्रनिर्भसं स्वरूपशून्यमिव समाधिः” पतंजलि योग साहित्य का एक श्लोक है जिसका अर्थ है कि जब योग साधक को केवल अपना ही लक्ष्य दिखता है और उसे जब चित्त में शून्य जैसा अनुभव होता हो तो फिर वही स्थिति समाधि कहलाती है. समाधि अष्टांग योग के आठ अंगों यथा यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि में सबसे अंतिम सोपान में वर्णित है जबकि ध्यान की चर्चा सातवें सोपान पर की गयी है. सातवाँ सोपान अर्थात ध्यान पहले सोपान अर्थात यम से शुरू होकर अंत तक निरंतरता के साथ यथावत कार्य करता रहता है.क्योंकि जैसे ही ध्यान भटका, तन्द्रा भंग हुयी तो साधना में विघ्न तय है. साधक भी अनेकों प्रकार से वर्गीकृत किये जा सकते हैं. देखा जाये तो संसार में सभी साधक ही है, फर्क बस इतना है कि कोई किसी की साधना में लिप्त है तो कोई किसी की. कुछ लोग साधना के माध्यम से आनंद प्राप्त करने की चेष्टा में प्रयासरत हैं कुछ लोग इसकी साधना करते हैं कि सामने वाले की साधना कैसे भंग की जाये. मजेदार और दिलचस्प बात यह है कि इन सभी में ध्यान का लक्ष्य पर निरंतर केंद्रित होना आवश्यक होता है. और कार्य की सफलता और असफलता बस इस बात पर निर्भर करती है कि कौन किस क्षेत्र में इस ध्यान को कितना और कैसे केंद्रित कर पता है.
लंबे समय से राजनीति की पारी खेल रहे तमाम नेताओं और सत्ता के शीर्ष पर बैठे मंत्रीगण भले ही योग गुरु स्वामी रामदेव के योग वाले अध्याय से चित्त वृत्तियों के निरोध को लेकर कभी सहमति तो कभी असहमति दर्शाते रहे हों परन्तु योग के इन विभिन्न सोपानों को राजनीति के क्षेत्र में उन्होंने कभी भी तिलांजलि नहीं दी. काग दृष्टि और बको ध्यानं के तर्ज पर ध्यान सदैव कुर्सी और सत्ता पर बरकरार.बड़े से बड़े आंदोलन को मिटा नहीं सकें तो कम से कम भटका दें पर उनके स्वयं के उद्देश्यों का कहीं कोई भटकाव नहीं होता है. लक्ष्य निश्चित है मछली की आँख की तरह और तैयारी रहती है तो बस अगले किसी भी चुनाव के जंग को जीतने की - येन केन प्रकारेण. पंचायत और नगर निगम चुनाव से लेकर विधान सभा और लोकसभा चुनाव तक.पकड़ मजबूत रहनी चाहिए.
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