1 12. नीचे दो काव्यांश दिए गए हैं। किसी एक काव्यांश को ध्यानपूर्वक पढ़िए और उस पर आधारित प्रश्नों के उत्तर सही विकल्प चुनकर लिखिए-
क्या कुटिल व्यंग्य ! दीनता वेदना से अधीर,
आशा से जिनका नाम रात-दिन जपती है,
दिल्ली के वे देवता रोज कहते जाते,
'कुछ और धरो धीरज, किस्मत अब छपती है।'
किस्मतें रोज छप रहीं, मगर जलधार कहाँ ?
प्यासी हरियाली सूख रही है खेतों में,
निर्धन का धन पी रहे लोभ के प्रेत छिपे,
पानी विलीन होता जाता है रेतों में।
हिल रहा देश कुत्सा के जिन आघातों से,
वे नाद तुम्हें ही नहीं सुनाई पड़ते हैं?
निर्माणों के प्रहरियों! तुम्हें ही चोरों के
काले चेहरे क्या नहीं दिखाई पड़ते हैं?
तो होश करो, दिल्ली के देवों, होश करो
सब दिन तो यह मोहिनी न चलने वाली है,
होती जाती है गर्म दिशाओं की साँसें,
मिट्टी फिर कोई आग उगलने वाली है।
(i) गरीबों के प्रति कुटिल व्यंग्य क्या है?
(क) धीरज रखने का अनुरोध. (ख) भाग्य पलटने का आश्वासन ।
(ग) कुछ और काम करने का आग्रह।
(घ) वेदना और अधीरता।
(ii) दिल्ली के वे देवता-कौन हैं?
(क) सरकारी कर्मचारी। (ख) शक्तिशाली शासक। (ग) बड़े व्यापारी। (घ) प्रभावशाली लोग।
(ii) कौन-सी पंक्ति परिवर्तन होने की चेतावनी दे रही है? (क) और धरो धीरज, किस्मत अब छपती है।
(ख) पानी विलीन होता जाता है रेतों में।
(ग) तो होश करो दिल्ली के देवों।
(घ) मिट्टी फिर कोई आग उगलने वाली है
(iv) 'पानी विलीन होता जाता है रेतों में'-कथन का आशय है-
(क) सिंचाई नहीं हो पाती।
(ख) वर्षा पर्याप्त नहीं होती।
(ग) गरीबों तक सुविधाएँ नहीं पहुँचतीं।
(घ) रेत में खेती नहीं हो सकती।
(v) निर्माण के प्रहरी अनदेखी करते हैं-
(क) वैभवशाली लोगों की। (ख) दिल्ली के देवों की।
(ग) हरे-भरे खेतों की। (घ) चारों ओर भ्रष्टाचारियों की।
Answers
क्या कुटिल व्यंग्य ! दीनता वेदना से अधीर,
आशा से जिनका नाम रात-दिन जपती है,
दिल्ली के वे देवता रोज कहते जाते,
'कुछ और धरो धीरज, किस्मत अब छपती है।'
किस्मतें रोज छप रहीं, मगर जलधार कहाँ ?
प्यासी हरियाली सूख रही है खेतों में,
निर्धन का धन पी रहे लोभ के प्रेत छिपे,
पानी विलीन होता जाता है रेतों में।
हिल रहा देश कुत्सा के जिन आघातों से,
वे नाद तुम्हें ही नहीं सुनाई पड़ते हैं?
निर्माणों के प्रहरियों! तुम्हें ही चोरों के
काले चेहरे क्या नहीं दिखाई पड़ते हैं?
तो होश करो, दिल्ली के देवों, होश करो
सब दिन तो यह मोहिनी न चलने वाली है,
होती जाती है गर्म दिशाओं की साँसें,
मिट्टी फिर कोई आग उगलने वाली है।
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Answer:
आशा से जिनका नाम रात-दिन जपती है,
दिल्ली के वे देवता रोज कहते जाते,
'कुछ और धरो धीरज, किस्मत अब छपती है।'
किस्मतें रोज छप रहीं, मगर जलधार कहाँ ?
प्यासी हरियाली सूख रही है खेतों में,
निर्धन का धन पी रहे लोभ के प्रेत छिपे,
पानी विलीन होता जाता है रेतों में।
हिल रहा देश कुत्सा के जिन आघातों से,
वे नाद तुम्हें