1. 2. अ) खालील कृती सोडवा. (कोणतेही दोन) 1) इतिहासलेखनाचा फार महत्त्वाचा आणि विश्वसनीय पुरावा 2) गोंडवनची राणी 3) गुरु गोविंदसिंग यांनी स्थापन केलेले दल
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Explanation:
सिख धर्म का इतिहास प्रथम सिख गुरु, गुरु नानक के द्वारा पन्द्रहवीं सदी में भारत के पंजाब क्षेत्र में आग़ाज़ हुआ। इसकी धार्मिक परम्पराओं को गुरु गोबिन्द सिंह ने 30 मार्च 1699 के दिन अंतिम रूप दिया।[1] विभिन्न जातियों के लोग ने सिख गुरुओं से दीक्षा ग्रहणकर ख़ालसा पन्थ को सजाया। पाँच प्यारों ने फिर गुरु गोबिन्द सिंह को अमृत देकर ख़ालसे में शामिल कर लिया।[2] इस ऐतिहासिक घटना ने सिख धर्म के तक़रीबन 300 साल इतिहास को तरतीब किया।
सिख धर्म
पर एक श्रेणी का भाग
सिख सतगुरु एवं भक्तसतगुरु नानक देव · सतगुरु अंगद देवसतगुरु अमर दास · सतगुरु राम दास ·सतगुरु अर्जन देव ·सतगुरु हरि गोबिंद ·सतगुरु हरि राय · सतगुरु हरि कृष्णसतगुरु तेग बहादुर · सतगुरु गोबिंद सिंहभक्त कबीर जी · शेख फरीदभक्त नामदेवधर्म ग्रंथआदि ग्रंथ साहिब · दसम ग्रंथसम्बन्धित विषयगुरमत ·विकार ·गुरूगुरद्वारा · चंडी ·अमृतनितनेम · शब्दकोषलंगर · खंडे बाटे की पाहुल
सिख धर्म का इतिहास, पंजाब का इतिहास और दक्षिण एशिया (मौजूदा पाकिस्तान और भारत) के 16वीं सदी के सामाजिक-राजनैतिक महौल से बहुत मिलता-जुलता है। दक्षिण एशिया पर मुग़लिया सल्तनत के दौरान (1556-1707), लोगों के मानवाधिकार की हिफ़ाज़ात हेतु सिखों के संघर्ष उस समय की हकूमत से थी, इस कारण से सिख गुरुओं ने मुस्लिम मुगलों के हाथो बलिदान दिया।[3][4] इस क्रम के दौरान, मुग़लों के ख़िलाफ़ सिखों का फ़ौजीकरण हुआ। सिख मिसलों के अधीन 'सिख राज' स्थापित हुआ और महाराजा रणजीत सिंह के हकूमत के अधीन सिख साम्राज्य, जो एक ताक़तवर साम्राज्य होने के बावजूद इसाइयों, मुसलमानों और हिन्दुओं के लिए धार्मिक तौर पर सहनशील और धर्म निरपेक्ष था। आम तौर पर सिख साम्राज्य की स्थापना सिख धर्म के राजनैतिक तल का शिखर माना जाता है,[5] इस समय पर ही सिख साम्राज्य में कश्मीर, लद्दाख़ और पेशावर शामिल हुए थे। हरी सिंह नलवा, ख़ालसा फ़ौज का मुख्य जनरल था जिसने ख़ालसा पन्थ का नेतृत्व करते हुए ख़ैबर पख़्तूनख़्वा से पार दर्र-ए-ख़ैबर पर फ़तह हासिल करके सिख साम्राज्य की सरहद का विस्तार किया। धर्म निरपेक्ष सिख साम्राज्य के प्रबन्ध के दौरान फ़ौजी, आर्थिक और सरकारी सुधार हुए थे।
1947 में पंजाब का बँटवारा की तरफ़ बढ़ रहे महीनों के दौरान, पंजाब में सिखों और मुसलमानों के दरम्यान तनाव वाला माहौल था, जिसने पश्चिम पंजाब के सिखों और हिन्दुओं और दूसरी ओर पूर्व पंजाब के मुसलमानों का प्रवास संघर्षमय