1.21 निम्नलिखित गद्यांश की संदर्भ प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
(क) धर्म की इस बुद्धिहीन दृढ़ता और देव दुर्लभ त्याग पर मन बहुत झुंझलाया।
अब दोनों शक्तियों में संग्राम होने लगा। धन ने उछल उछल कर आक्रमण
करने शुरू किए। एक से पांच, पांच से दस, दस से पन्द्रह और पन्द्रह से बीस
हजार तक नौबत पहुँची, किंतु धर्म अलौकिक वीरता के साथ इस बहुसंख्यक
सेना के सम्मुख अकेला पर्वत की भाँति अटल अविचलित खड़ा था।
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Answer:
answer kya haii
उतर :-
दिया गया गद्यांश मुंशी प्रेमचंद की कहानी 'नमक का दारोगा' से लिया गया है l
इसमें कवि ने एक ईमानदार दरोगा वंशीधर की ईमानदारी का वर्णन किया है l
व्याख्या :-
कहानी की शुरुआत होती है, जब रात में पंडित अलोपीदीन अपनी गाड़ियां लेकर निकल रहे थे और रोक दरोगा वंशीधर उनको रोक देते है l पंडित अलोपीदीन का लक्ष्मीजी पर अखंड विश्वास था l वह कहा करते थे कि संसार का तो कहना ही क्या, स्वर्ग में भी लक्ष्मी का ही राज्य है l न्याय और नीति सब लक्ष्मी के ही खिलौने हैं, इन्हें वह जैसे चाहती हैं नचाती हैं l
पंडित अलोपीदीन ने जब उनको रिश्वत देने का प्रयास किया तो वह नहीं माने और अपने जमादार बदलूसिंह को उन्हें हिरासत में लेने का हुक़्म दे दिया l
पंडित अलोपीदीन स्तम्भित हो गए , यह पहला ही अवसर था कि पंडितजी को ऐसी कठोर बातें सुननी पड़ीं l पंडितजी ने धर्म को धन का ऐसा निरादर करते कभी न देखा था l तब पंडित ने अपनी इज़्ज़त खोने के भय से अपने मुख़्तार से एक हज़ार के नोट बाबू साहब की भेंट करने को कहा l वंशीधर ने गरम होकर कहा,‘एक हज़ार नहीं, एक लाख भी मुझे सच्चे मार्ग से नहीं हटा सकते l ’
धर्म को ऐसी बुद्धिहीन बात सुनकर पंडित जी को विश्वास नहीं हुआ l धन ने अपनी ताकत दिखानी शुरू कर दी l अब वह एक हजार से पांच, पांच से दस, दस से पंद्रह और पंद्रह से बीस हज़ार तक देने को तैयार हो गए l परंतु अलोपीदीन ने जिस सहारे को चट्टान समझ रखा था, वह पैरों के नीचे खिसकता हुआ मालूम हुआ l किन्तु धर्म(ईमानदारी) पूरी वीरता के साथ धन रूपी सेना के सम्मुख अकेला पर्वत की भांति स्थिर तथा कर्तव्य से खड़ा रहा l
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