(1-5) Read the following passage.
‘I looked at myself in the mirror and said: ‘You know what? The world is right that I have no arms
and legs, but they’ll never take away the beauty of my eyes.’ I wanted to concentrate on something
good that I had.’
“The challenges in our lives are there to strengthen our convictions. They are not there to run us
over”, said Nick. In 1990 Nick won the Australian Young Citizen of the Year award for his
bravery and perseverance.
Now answer the following questions.
10M
1.
Who is the speaker here?
2.
Why are there challenges in our lives?
3.
Nick won the Australian Young Citizen Award for his ………………….
(A) motivational speeches
(B) beauty of eyes
(C) bravery and perseverance
4.
I wanted to concentrate on something good that I had.’ Nick is good at….
(A) driving the car
(B) motivating people (C) playing cricket
5.
Nick was not sad about not having arms and legs. But he was happy about having _____
(A) a small foot
(B) a torso
(C) beautiful eyes
Answers
Answer:
*"रख होसला वह मंजर भी आएगा,*
*प्यासे के पास चलकर समुंदर भी आएगा, थक कर ना बैठ ए मंजिल के मुसाफिर,*
*मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा"* *"रख होसला वह मंजर भी आएगा,*
*प्यासे के पास चलकर समुंदर भी आएगा, थक कर ना बैठ ए मंजिल के मुसाफिर,*
*मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा"* *"रख होसला वह मंजर भी आएगा,*
*प्यासे के पास चलकर समुंदर भी आएगा, थक कर ना बैठ ए मंजिल के मुसाफिर,*
*मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा"* *"रख होसला वह मंजर भी आएगा,*
*प्यासे के पास चलकर समुंदर भी आएगा, थक कर ना बैठ ए मंजिल के मुसाफिर,*
*मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा"* *"रख होसला वह मंजर भी आएगा,*
*प्यासे के पास चलकर समुंदर भी आएगा, थक कर ना बैठ ए मंजिल के मुसाफिर,*
*मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा"* *"रख होसला वह मंजर भी आएगा,*
*प्यासे के पास चलकर समुंदर भी आएगा, थक कर ना बैठ ए मंजिल के मुसाफिर,*
*मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा"* *"रख होसला वह मंजर भी आएगा,*
*प्यासे के पास चलकर समुंदर भी आएगा, थक कर ना बैठ ए मंजिल के मुसाफिर,*
*मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा"* *"रख होसला वह मंजर भी आएगा,*
*प्यासे के पास चलकर समुंदर भी आएगा, थक कर ना बैठ ए मंजिल के मुसाफिर,*
*मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा"* *"रख होसला वह मंजर भी आएगा,*
*प्यासे के पास चलकर समुंदर भी आएगा, थक कर ना बैठ ए मंजिल के मुसाफिर,*
*मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आएगा"*