1. आज सवेरे उपवन में कौन आया? कवि ने उससे क्या प्रश्न पूछा?
2. उपवन और कवि के जीवन में क्या अंतर है?
3. अर्थ स्पष्ट कीजिए-
आँधी तूफ़ानों को सिर पर लेना
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Answers
Answer:
कानों ही कानों मैंने उससे पूछा-'"मित्र! पा गए तुम तो अपने योवन का उल्लास दुबारा
गमक उठे फिर प्राण तुम्हारे, फलों-सा मन फिर मुस्काया, पर साथी
क्या दोगे मुझको?
मेरा यौवन मुझे दुबारा मिल न सकेगा?''
सरसों की उँगलियाँ हिलाकर संकेतों में वह यों बोला
मेरे भाई!
व्यर्थ प्रकृति के नियमों को यों दो न दुहाई,
होड़ न बॉधो तुम यों मुझसे।।
जब मेरे जीवन का पहला पहर झुलसता था आग की लपटों में,
तुम बैठे थे बंद उशीर पटों से घिरकर ।
मैं जब वर्षा की बाढ़ों में डूब--डूबकर उतराया था
तुम हँसते थे वाटर-पूफ कवच को ओढे ।।
और शीत के पाले में जब गलकर मेरी देह जम गई
तब बिजली के हीटर से, तुम सेक रहे थे अपना तन-मन ।।
आज सवेरे, जब वसंत आया उपवन में चुपके-चुपके ।
प्रश्न में दी गई पंक्तियों में कवि ने वसंत ऋतु की शुरुआत में जो होता है उस के बारे में वर्णन किया है , जब वसंत ऋतु आती है तब सब कुछ नया होता | हर चीज़ सुन्दर लगती है , वसंत साल का सबसे सुन्दर मौसम होता है| वसंत तो एक शुरुआत होती है , वसंत में आगे चल फूल, कानों ही कानों मैंने उससे पूछा-'"मित्र! पा गए तुम तो अपने योवन का उल्लास दुबारा
गमक उठे फिर प्राण तुम्हारे, फलों-सा मन फिर मुस्काया, पर साथी
Answer:
१ आज सवेरे उपवन में वसंत आया । कवि ने उससे पूछा की मित्र ! पा गए तुम तो अपने यौवन का उल्लास दुबारा ।
२ उपवन और कवि में यह अंतर है कि उपवन कभी भी कष्टों से दूर नहीं भागता है परंतु कवि कष्टों से दूर भागता है ।
३ हमें हमेशा कष्टों से दूर नहीं भागना चाहिए । उसका डटकर सामला करना चाहिए ।
Explanation:
इसीलिए कहा जाता है कि :-
जिसने झेला नहीं , खेल क्या उसने खेला ?
जो कष्टों से भागा , दूर हो गया सहज जीवन के क्रम से ,
उसको दे क्या दान प्रकृति की यह गतिमयता
यह नव बेला