1. आर्यसमाज के अन्तिम चार नियमों को क्रमानुसार लिखिए।
2. सातवें नियम के अनुसार अन्य लोगों के साथ हमारा व्यवहार कैसा
होना चाहिए? संक्षेप में वर्णन करें।
3. विद्या और अविद्या से आप क्या समझते हैं? आर्यसमाज ने अविधा
के नाश के लिए क्या-क्या कार्य किए?
4. अपनी उन्नति के साथ-साथ दूसरों की उन्नति का ध्यान रखने
के लिए क्या करना चाहिए?
5. आर्यसमाज का दसवाँ नियम सामाजिक व्यवस्था को दृढ़ करने
में कैसे सहायक है?
Answers
1. आर्यसमाज के अन्तिम चार नियमों को क्रमानुसार लिखिए।
➲ आर्यसमाज के अन्तिम चार नियम इस प्रकार हैं...
- सबसे प्रीतिपूर्वक धर्मानुसार यथायोग्य व्यवहार करना चाहिए।
- अविद्या का नाश और विद्या की वृद्धि करनी चाहिए।
- प्रत्येक को केवल अपनी प्रगति से ही संतुष्ट नहीं रहना चाहिए बल्कि सब की प्रगति में अपनी प्रगति समझनी चाहिए।
- सब मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियमों का पालन करने में परतंत्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतंत्र रहना चाहिए।
2. सातवें नियम के अनुसार अन्य लोगों के साथ हमारा व्यवहार कैसा होना चाहिए? संक्षेप में वर्णन करें।
➲ सातवें नियम के अनुसार सबसे प्रेमपूर्वक यथायोग्य धर्मानुसार व्यवहार करना चाहिए।
3. विद्या और अविद्या से आप क्या समझते हैं? आर्यसमाज ने अविद्या के नाश के लिए क्या-क्या कार्य किए?
➲ विद्या और अविद्या से तात्पर्य है, अज्ञानता और ज्ञान। आर्यसमाज ने अविद्या के नाश के लिये शिक्षा का प्रसार-प्रसार किया। उन्होने जगह-जगह डीएवी विद्यालयों की स्थापना की।
4. अपनी उन्नति के साथ-साथ दूसरों की उन्नति का ध्यान रखने के लिए क्या करना चाहिए?
➲ अपनी उन्नति के साथ-साथ दूसरो की उन्नति का ध्यान रखने के लिए न केवल अपनी उन्नति के बारे में सोचना चाहिए बल्कि सबकी उन्नति के बारे में सोचना चाहिए।
5. आर्यसमाज का दसवाँ नियम सामाजिक व्यवस्था को दृढ़ करने में कैसे सहायक है?
➲ आर्यसमाज का दसवाँ नियम सामाजिक व्यवस्था को दृढ़ करने में इस तरह का सहायक है, क्योंकि इस नियम के अन्तर्गत मनुष्यों को सामाजिक सर्वहितकारी नियमों का पालन करने में परतंत्र रहना चाहिए और प्रत्येक हितकारी नियम में सब स्वतंत्र रहना चाहिए।
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