(1) अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी। प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी। प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा। प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती। प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा। प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
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प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी , जाकी अँग-अँग बास समानी । प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा , जैसे चितवत चंद चकोरा । प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती , जाकी जोति बरै दिन राती । ... चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है , उसी प्रकार मेरे तन मन में तुम्हारा प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है ।17-Sep-2008
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