(1) अब कैसे छूटै राम नाम रट लागी। प्रभु जी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी। प्रभु जी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा । प्रभु जी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन राती । प्रभु जी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सुहागा। प्रभु जी, तुम स्वामी हम दासा, ऐसी भक्ति करै रैदासा।।
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