India Languages, asked by Charmichhowala77, 5 months ago

1. अहंछायांएवं पुतिाकि ददास्ि अहं कः ?​

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Answered by Anonymous
5

Explanation:

उपनिषदों के चार महावाक्यों में से एक महावाक्य है - "अहं ब्रह्मास्मि"। महावाक्य पूरे अध्यामिक शास्त्रों का निचोड़ है। उपनिषद् अध्यात्मिक शास्त्र के प्रमाण ग्रंथ हैं। अहं ब्रह्मास्मि का सरल अर्थ है अहं ब्रह्म अस्मि। अर्थात मैं ब्रह्म[1] हूँ।

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इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है।

वैदिक संस्कृति जो कि दुनिया में सबसे पुरातन एवं सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है। इस संस्कृति कि मान्यता है कि भगवान ने यह सृष्टि बनाई है। भगवान ने सृष्टि बनाई और वो स्वयं चराचर में व्याप्त है। गीता

Answered by sittus573
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Explanation:

उपनिषदों के चार महावाक्यों में से एक महावाक्य है - "अहं ब्रह्मास्मि"। महावाक्य पूरे अध्यामिक शास्त्रों का निचोड़ है। उपनिषद् अध्यात्मिक शास्त्र के प्रमाण ग्रंथ हैं। अहं ब्रह्मास्मि का सरल अर्थ है अहं ब्रह्म अस्मि। अर्थात मैं ब्रह्म[1] हूँ।

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इस लेख में सन्दर्भ या स्रोत नहीं दिया गया है।

वैदिक संस्कृति जो कि दुनिया में सबसे पुरातन एवं सर्वोत्कृष्ट मानी जाती है। इस संस्कृति कि मान्यता है कि भगवान ने यह सृष्टि बनाई है। भगवान ने सृष्टि बनाई और वो स्वयं चराचर में व्याप्त है। गीता

में श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं सर्वस्य चाहं हृदि सन्निविष्टो मतलब कि मैं सभी प्राणीयों के दिल में बसता हूँ। "अहं ब्रह्मास्मि" ये वाक्य मानव को महसूस कराता है कि जिस भगवान ने बड़े-बड़े सागर, पर्वत, ग्रह, ये पुरा ब्रह्मांड बनाया उस अखंड शक्तिस्रोत का मैं अंश हूँ तो मुझे भी उसका तेजोंऽश मुझमे भी जागृत कर उसका बनने का प्रयत्न करना चाहिए। तभी उसकी नैतिक उन्नति की शुरूवात हो जाती है। अहं ब्रह्मास्मि - यजुर्वेदः बृहदारण्यकोपनिषत् अध्याय 1 ब्राह्मणम् 4 मंत्र 10 ॥

हरिओम पाठक (Indore Institute of law)

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वेदान्त में तीन मुख्य मत है एक अद्वैत मत दूसरा द्वैत तीसरा द्वैत अद्वैत। किसका मत कौन सा मत सर्वोत्तम है कौन सा नहीं अभी इसमें विवाद है।

जीवन को विचार की गहनता से नहीं जाना जा सकता क्योंकि विचार की एक सीमा है और जीवन असीम है। आप कितना भी विचार करें वहां तक नहीं पहुंच सकते जो सत्य है,अहं ब्रह्मास्मि विचार का प्रतिपादन नहीं है। यह तो जीवन के अनन्त स्त्रोत को जानने के बाद का किया गया उद्घोष है। जीवन द्वैत से अद्वैत की यात्रा काम नाम है जीवन को आप एक आयाम में नहीं देख सकते जब जीवन को आप विचार से देखते हैं तो द्वैत है। आप हर चीज को बांट के देखते हैं जैसे दिन और रात, धूप और छांव, एक आदमी दूसरे को अपने से अलग समझता है, मनुष्य पशु से अपने को अलग समझता है।ये व्यवहार के लिए ठीक है मगर जीवन व्यवस्था कोई किसी से अलग नहीं है, आप अपने मन से जीते हैं इस लिए आप को पता नहीं चलता कि जीवन क्या है सत्य क्या ब्रह्म क्या है। जीवन को बांट नहीं जा सकता है, जो बट जाए ओ जीवन नहीं ओ आप का अहंकार है,जिसे आप जानते हैं। आप उपनिषद् की बात नहीं समझ सकते क्योंकि उपनिषद् को समझने के लिए उपनिषद् होना पड़ेगा विचार से उसे नहीं जाना जा सकता। अगर आप विचार से उसे जानने का प्रयास करेंगे तो कुछ भी नहीं जानते सकते सिवाय शब्दों के ज्ञान ही होंगे और कुछ भी नहीं और शब्द से सत्य का कुछ लेना देना नहीं है।

"Meaning of Aham Brahamasmi". मूल से 27 जून 2018 को पुरालेखित. अभिगमन तिथि 4 अगस्त 2018.

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