Hindi, asked by aggarwalmamta6483, 4 days ago

1.अपने बचपन की किसी ऐसी घटना के बारे बताते हुए अपने मित्र को लिखिए, जिसने आपको जीवन की महत्त्वपूर्ण सीख दी हो। पत्र लिख के बताओ (शब्द सीमा 120-150) ​

Answers

Answered by maheshkkumar2007
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बचपन के

दिन किसी भी व्यक्ति के जीवन के बड़े महत्वपूर्ण दिन होते हैं । बचपन में सभी व्यक्ति चिंतामुक्त जीवन जीते हैं । खेलने उछलने-कूदने, खाने-पीने में बड़ा आनंद आता है ।

माता-पिता, दादा-दादी तथा अन्य बड़े लोगों का प्यार और दुलार बड़ा अच्छा लगता हैं । हमउम्र बच्चों के साथ खेलना-कूदना परिवार के लोगों के साथ घूमना-फिरना बस ये ही प्रमुख काम होते हैं । सचमुच बचपन के दिन बड़े प्यारे और मनोरंजक होते हैं ।

मुझे अपने बाल्यकाल की बहुत-सी बातें याद हैं । इनमें से कुछ यादें प्रिय तो कुछ अप्रिय हैं । मेरे बचपन का अधिकतर

Answer

बचपन शब्द का उच्चारण करने मात्र से ही मेरे बचपन की सारी यादें ताजा हो जाती हैं !

बात है बहुत सालों पहले, बचपन के समय की। उन दिनों रोजाना स्कुल से आने के बाद शाम को (जेसा की हर स्कुली बच्चा करता है) हम लोग खेलने जाते थे पास के ही स्कुल ग्राउंड में । लेटेस्ट खेलों से लेकर पारम्परिक देसी खेल जेसे की क्रिकेट, बेडमिन्टन, गुल्ली डंडा, रामदोस्त, कंचे (अंटिया) सब बडे मजे से खेले जाते थे, आज के जेसे नहीं कि हर बच्चा टी. वी. से चिपका हो । आलम ये था की उस दौरान शाम सुबह तो जगह नहीं मिलती थी, खेलने के लिये तो फिर जल्दी किसी गुरगे को बिठा कर जबरन कब्जा जमाया जाता, कि पहले हम आएं हैं तो हमारी टीम यहां खेलेगी, और इस ही क्रम में कभी कभी पंगे भी हो जाते थे ।

पहली टीम दुसरी टीम को कहती कि आ जाना कल शाम को चार बजे देख लेते हैं कि किसने असली मां का दुध पिया है, तो दुसरी टीम में से कोई पहलवान टाइप का लडका कहता कि कल क्या है आज ही देख लेते हैं, चल बता क्या करेगा हम सबके साथ । कोई बहुत बहसे होती व कभी कभी लडाई भी । पर अक्सर कल कल के चक्कर में कई लडाईयां टल जाया करती थी, क्यों कि दुसरे दिन दोनों ही टीमें नदारत होती थी फिर अक्सर बडा कोई सीनीयर मोस्ट व्यक्ती समझौता करा ही देता था, व फिर से वही खेल खेले जाते सदभावना के साथ ।

तब गन्दे खेलों में से एक थी अंटीया (कंचे), मंजे हुए खिलाडी स्कुल की गन्दी हो चुकी खाकी पेन्ट की जेब में जब छन छन करते हुए कन्चे बजाते हुए शाम को जब ग्राउंड का रुख करते थे तो एसा लगता था की जेसे कोई बहुत बडे महान कंचेबाजखिलाडी आ रहे हैं। और वही बडे कलेक्शन रखने वाले जब कभी शाम को हार जाते थे तो मायुस चेहरा लिये घर जाते, उनका मुंह एसा लटक जाता जेसे उनसे कोई दुनिया की दौलत छीन कर ले गया हो । तब दोस्त लोग एक दुसरे को ढ़ाढ़स बंधाते की क्या फर्क पडता है आज हारें हैं तो कल वापस सारी अंटीया जीत भी लेंगे, और बाद में दुसरे दिन दुसरी पार्टी को हराया केसे जाए इसकी रणनितियां बनायी जाती थी ।

अच्छे निशानेबाज बन्दे तो अपनी जेब में लकी वाला पानीचा कन्चा भी रखते थे (कहते यार ये मेरा लकी कन्चा है इससे परफेक्ट निशाने लगते है), कुछ तो बदमाश एसे थे की जब दुसरे का निशाना लगाने का नंबर आता था तो एक छोटा सा, या फिर काफी बडा सा कन्चा, रख देते थे, छोटा कन्चा होने से अक्सर सामने वाले के निशाने चुक जाते थे। अगर बडा कन्चा रख दिया जाता तो उस पर निशाना तो लगता पर वह अपने भारी वजन के कारण ज्यादा दूर नहीं जा पाता था व इस तरह से ज्यादा फिलडींग से श्याने खिलाडी बच जाते थे । उनमें से कुछ तो भारी गुरु घंटाल खिलाडी हुआ करते थे जो कि स्टील का छर्रा रखते थे, छर्रे से खेलने के दो फायदे थे एक तो दुसरे के दुसरे खिलाडी के निशाने कितने भी तेज क्यों ना हो, छर्रा ज्यादा वजन के कारण दूर नहीं जाता था व दुसरे पर गुस्सा निकालने के समय तो छर्रा जेसे बह्मास्त्र बन जाता था, नतीजा ये की सामने वाले की अंटी या तो फूट जाती या फिर ईतनी दुर चली जाती कि वो खिलाडी अंधेरा पडने तक फिलडींग ही करता रहता था ।

कन्चे के तेज निशानेबाज खिलाडी तो जेसे उस समय के शार्पशुटर थे मानो, उनमें से कुछ तो पर्सनल केशियर या खजांची भी रखते थे जो की अपनी जेब में बहुत सारे कंचे रखता था व वक्त जरुरत उधार भी देता । मकर संक्रान्ति के दिन तो पुरे ग्राउंड में जगह नही मिलती थी खेलने के लिये व तब नये नये जगहों की तलाश की जाती थी, और वहां जा कर खेला जाता था। खेल प्रेमियों की नगरी कहा जाने वाले हमारे कस्बे कांकरोली में आए दिन तरह तरह के मेच व प्रतिस्पर्धाएं होती ही रहती थी । पहले से काफी सुविधाएं हो गई हैं यहां, जेसे छायादार स्टेडीयम, अच्छी समतल जमीन व अन्य ।

पर अब में आज अपने उसी ग्राउंड को देखता हुं तो मन व्यथित हो उठता है कि एक समय ये भरा रहता था इतने यहां खिलाडी हुआ करते थे व आज पता नहीं क्या हो गया है कि ये ग्राउंड अक्सर सुनसान वीरान ही पडा रहता है।

आशा है आपको आंसर अच्छा लगेगा

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