1- अपने परिवार के बड़े सदस्यों से उनके बचपन के बारे में पूछिए और उनके बचपन और अपने बचपन में आप को क्या अंतर लगता है लिखिए । 2-सप्ताह में दो दिन हिंदी समाचार पत्र पढिए और आपको उसमें किस तरह की खबरें अच्छी लगीं और क्यों? लिखिए । 3-अपनी हिंदी व्याकरण की किताब में पढ़े गए दोनों पाठों में से किसी भी एक पाठ पर model बनाइए।(चार्ट में) 4-अपने दोस्तों,परिवार के सदस्यों,रिश्तेदारों के नाम का वर्ण विच्छेद कीजिए और हिंदी व्याकरण की कापी में लिखिए ।
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दादी-दादी के बचपन और हमारे अपने बचपन में बहुत बड़ा अंतर आ गया है। हमारे अपने बचपन के मासूमियत छिन चुकी है। हम समय से पहले बड़े हो गये हैं।
जैसा कि अक्सर दादा-दादी अपने किस्से कहानियों में अपने बचपन का जिक्र करते हैं तो उससे एक अनुमान लगता है कि दादी-दादी का बचपन सरल, सहज और मासूमियत भरा वास्तविक बचपन था। दादी-दादी के समय में उनका बचपन वास्तव में बचपन था। वो प्रकृति के नजदीक होते थे, खेत-खलिहानों में खेलते-कूदते थे और हम अपने बचपन में प्रकृति से दूर हो गये हैं। स्वयं को घर की चारदीवारी में कैद कर लिया है। टी.वी., मोबाइल, कम्यूटर जैसे कृत्रिम साधन अब हमारे खिलौने बन चुके हैं। हम वास्तविक दुनिया से दूर एक आभासी दुनिया में जीने लगे हैं।
दादी-दादी के बचपन में निश्छलता थी, मासूमियत थी, बाल-सुलभ हठ थे। अपने बड़ों से अपनत्व था। ये सब गुण हमारे बचपन में गुम हो गये है। दुनिया की सारी जानकारी पलभर में तकनीक के माध्यम से हमारे सामने उपलब्ध होने के कारण हममें वो सहज जिज्ञासा का अभाव हो गया है जिस जिज्ञासा की शांति के लिये हम अपने बड़ों से जुड़े रहते थे। उनके प्रति एक आत्मीयता का भाव बना रहता था। अब हम अपने सिमट गये हैं। अब हम अपने माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी आदि से कहानी सुनकर नही सोते हैं बल्कि टीवी, मोबाइल की स्क्रीन से बतियाते हुये सोते हैं।
कुल मिलाकर हम कह सकते हैं कि दादी-दादी के बचपन के मुकाबले हमारा बचपन कहीं खो गया है।
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