1. अपने विद्यालय के प्रधानाचार्य को पत्र लिखिए, जिसमें स्कूली बस्ते का बोझ कम करने की प्रार्थना
की गई हो
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शिक्षा के निजीकरण के इस दौर में बस्ते का बोझ हल्का करने की बात एक सपना ही हो गई है। बच्चे के मानसिक तनाव को कम करने के प्रयास निरर्थक नजर आ रहे है। लेकिन हाल ही में मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से तैयार नए नियमों के अनुसार भविष्य में कक्षा दो तक के बच्चों को बस्ता नहीं ढोना पड़ेगा। यह एक सराहनीय पहल है। एक बात तो साफ है कि सरकारी स्कूल वालों के बस्ते निजी स्कूल वालों के बस्तों से हल्के हैं। सरकारी स्कूलों में प्रारंभिक कक्षाओं में भाषा, गणित के अतिरिक्त एक या दो पुस्तकें हैं। लेकिन निजी स्कूलों के बस्तों का भार बढ़ता जा रहा है। इसके पीछे ज्ञानवृद्धि का कोई कारण नहीं है, बल्कि व्यापारिक रुचि ही प्रमुख है।
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