Hindi, asked by bhattimanjeetkaur95, 8 months ago

1.
बात अठन्नी की कहानी के
शीर्षककी सार्थकता को स्पष्ट
कहानी का उद्देश्य
हुए कहानी
व सारांश
करते हुए
2. संस्कार
और भावना
एकांकी
के लेखक का परिचय लिखते
एर एकांकी का सारांश लिरिवार​

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Answered by Anonymous
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1. "बात अठन्नी की" कहानी में कथाकार श्री सुदर्शन ने कहानी के माध्यम से समाज के कड़वे सच का परिचय करवाया है . पूरी कहानी अठन्नी पैसे के इर्द -गिर्द घूमती दिखाई देती है . रसीला को अपने बीमार बच्चों के इलाज़ के लिए अपने मित्र जो की पड़ोसी का चौकीदार रमज़ान है ,से पैसे लेकर भेजता है .

2.  विष्णु प्रभाकर

(जन्म: 1912 – मृत्यु: 2009)

विष्णु प्रभाकर हिन्दी के सुप्रसिद्‌ध लेखक के रूप में विख्यात हुए। उनका जन्म उत्तरप्रदेश के मुजफ्फरनगर जिले के गांव मीरापुर में हुआ था। उनके पिता दुर्गा प्रसाद धार्मिक विचारों वाले व्यक्ति थे और उनकी माता महादेवी पढ़ी-लिखी महिला थीं जिन्होंने अपने समय में पर्दा प्रथा का विरोध किया था। उनकी पत्नी का नाम सुशीला था। विष्णु प्रभाकर की आरंभिक शिक्षा मीरापुर में हुई। बाद में वे अपने मामा के घर हिसार चले गये जो तब पंजाब प्रांत का हिस्सा था। घर की माली हालत ठीक नहीं होने के चलते वे आगे की पढ़ाई ठीक से नहीं कर पाए और गृहस्थी चलाने के लिए उन्हें सरकारी नौकरी करनी पड़ी। चतुर्थ वर्गीय कर्मचारी के तौर पर काम करते समय उन्हें प्रतिमाह १८ रुपये मिलते थे, लेकिन मेधावी और लगनशील विष्णु ने पढाई जारी रखी और हिन्दी में प्रभाकर व हिन्दी भूषण की उपाधि के साथ ही संस्कृत में प्रज्ञा और अंग्रेजी में बी.ए की डिग्री प्राप्त की। विष्णु प्रभाकर पर महात्मा गाँधी के दर्शन और सिद्धांतों का गहरा असर पड़ा। इसके चलते ही उनका रुझान कांग्रेस की तरफ हुआ और स्वतंत्रता संग्राम के महासमर में उन्होंने अपनी लेखनी का भी एक उद्‌देश्य बना लिया, जो आजादी के लिए सतत संघर्षरत रही।

अपने दौर के लेखकों में वे प्रेमचंद, यशपाल, जैनेंद्र और अज्ञेय जैसे महारथियों के सहयात्री रहे, लेकिन रचना के क्षेत्र में उनकी एक अलग पहचान रही।प्रभाकर ने पहला नाटक लिखा- हत्या के बाद  और लेखन को ही अपनी जीविका बना लिया। आजादी के बाद वे नई दिल्ली आ गये और सितम्बर १९५५ में आकाशवाणी में नाट्य निर्देशक के तौर पर नियुक्त हो गये जहाँ उन्होंने १९५७ तक काम किया। ‘अद्‌र्धनारीश्वर’ पर उन्हें बेशक साहित्य अकादमी पुरस्कार हिन्दी प्राप्त हुआ, लेकिन ‘आवारा मसीहा’ ने साहित्य में उनकी एक अलग ही पहचान बना दी।प्रभाकर जी के साहित्य में मानवतावादी दृष्टिकोण देखने को मिलता है।

प्रमुख रचनाएँ

सत्ता के आर-पार, हत्या के बाद, नवप्रभात, डॉक्टर, प्रकाश और परछाइयाँ, बारह एकांकी, अब और नही, टूट्ते परिवेश, गान्धार की भिक्षुणी, और अशोक आदि।

संस्कार और भावना में विष्णु प्रभाकर जी ने मानवीय भावनाओं के बीच के द्वंद्व को बहुत मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। वे इस एकांकी के माध्यम से यह सन्देश देते हैं कि लोग पारंपरिक रुढ़िवादी संस्कारों की रक्षा करना अपना कर्तव्य समझते है। इसके कारण वे अपने निकट संबंधियों से भी रिश्ता तोड़ देते हैं। पर इसका दुःख हमेशा हमें कष्ट देता है। दुःख के समय जब कोई सहायता करता है तब ये रुदिग्रस्त प्राचीन संस्कार दुर्बल हो जाते हैं। मानवीय भावना प्रबल हो जाती है। जैसे एकांकी में जब माँ को अपने बेटे की जानलेवा बीमारी और उनकी बंगाली बहु द्वारा की गई सेवा की सूचना मिलती है उनका पुत्र प्रेम प्रबल हो जाता है और वे अपने बहु बेटे को अपनाने का निश्चय करतीं हैं।

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