(1) बादलों को किस रूप में प्रस्तुत किया गया है ?
( 2 ) अट नहीं रही है ।'कविता में किसके सौंदर्य का चित्रण है ?
( 3 ) लेखक को कौन-सी पुरानी आदत है ?"लखनवी अंदाज “पाठ के आधार पर लिखिए
(4) नवाब साहब ने गर्व से गुलाबी आँखों द्वारा लेखक की तरफ क्यों देखा ?
(5) कौन विकल और उन्मन थे और क्यों 'उत्साह' कविता के आधार पर लिखिए।
Answers
Answer:
please mark me as brainlist
Explanation:
नवाब साहब ने लेखक को आदाब-अर्ज़ कर खीरा खाने के लिये कहा। इस कथन से नवाब साहब की शराफत और तहज़ीब का पता चलता हैं। वे चीजें बांट कर खाने की आदत भी रखते हैं।
लेखक एक कल्पनाशील व विचारवान व्यक्ति है। वे बिना विचार के कहानी लिखने में माहिर हैं। वह अनुमान लगाता है कि नवाब साहब खीरे खाने का शौक रखते हैं और अकेले सफर का वक्त काटने के लिये ही खीरे खरीदे होंगे।
खाली समय में लेखक को कल्पना करने की आदत थी। तरह-तरह के नए-नए विचार उनके मन में उत्पन्न होते रहते थे। वह नवाब साहब की असुविधा व संकोच के कारण का अनुमान लगाते हुए सोचता है कि किफ़ायत के विचार से सेकंड क्लास का टिकट खरीदा होगा।
लेखक ने सेकंड क्लास का टिकट इसलिए खरीदा होगा क्योंकि उन्हें ज्यादा दूर नहीं जाना था| वह भीड़ से हटकर नई कहानी के बारे में सोचते हुए यात्रा करना चाहते थे | इसके अतिरिक्त उन्होंने सोचा कि वह प्राकृतिक दृश्यों का भी आनंद उठा लेंगे |
खीरे की फाँर्को को बाहर फेंकने के बाद नवाब साहब गर्व से भर उठे। उनके चेहरे पर संतुष्टि के मिश्रित भाव झलक रहे थे। मात्र सूंघने से ही तृप्ति का अनुभव कर खिड़की से बाहर खीरा फेंकना उनके रईसी खानदान को प्रदर्शित करता है। ऐसा करने से मानो कहना चाहते हो कि यह है रईसों का खानदानी तरीका। वे लेखक जैसे साधारण आदमी के सामने खीरा जैसा सस्ता फल खाने में भी संकोच करते हैं। इसमें उनकी खानदानी तहजीब, नफासत और नजाकत झलकती है |
लखनऊ के नवाबों और रईसों के बारे में लेखक की धारणा व्यंग्यपूर्ण और नकारात्मक थी। लेखक को उनकी बनावटी जीवन शैली नापसंद थी | वह उनके दिखावे के खिलाफ था | संभवतया इसलिए ही उसने आरंभ से ही डिब्बे में बैठे हुए नवाब को ‘नवाबी नस्ल का सफेदपोश’ कहा है |
‘लखनवी अंदाज़’ पाठ के माध्यम से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है आज भी नवाबी लोग अपनी नवाबी छिन जाने पर झूठी शान तथा तौर-तरीकों का ही दिखावा करते हैं और ऐसा करते समय वे यह भी नहीं सोचते कि इसमें उन्हें कोई लाभ मिलने वाला नहीं | जैसे पाठ में अपने दिखावे की प्रवृत्ति के कारण नवाब साहब को भूखा ही रहना पड़ा | वास्तव में यह व्यंग्य उस सामंती वर्ग पर कटाक्ष करता है जो अपनी झूठी शान बनाए रखने के लिए कृत्रिमता से युक्त जीवन जीते हैं |
इस कथन के माध्यम से लेखक ने नवाबी जीवन की नजाकत पर गहरा व्यंग्य किया है | इस प्रकार के लोग यथार्थ से कोसों दूर रहकर बनावटी जीवन जीते हैं | छोटी-छोटी बातों पर नखरे दिखाना ही इनकी नज़रों में रईसीपना होता है | अभावों में रहते हुए ये रईसी का दिखावा करते हैं और वास्तविकता को स्वीकार नहीं कर पाते |