1. "भिन्न-भिन्न भाव संस्कृतियों के गुण-गौरव का ज्ञान यहाँ।
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Explanation:
सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी’ के ‘काव्य-खण्ड’ में संकलित एवं मैथिलीशरण गुप्त द्वारा रचित ‘भारत माता का मंदिर यह’ शीर्षक से उधृत है।
[विशेष—इस शीर्षक के अन्तर्गत आने वाले सभी पद्यांशों के लिए यही सन्दर्भ प्रयुक्त होगा।
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समस्त भारतभूमि को भारत माता का मंदिर (पवित्र स्थल) बताते हुए उसकी विशेषताओं का वर्णन किया है।
व्याख्या-इन पंक्तियों में कवि अपने देश (भारतभूमि) को भारत माता का मंदिर बताते हुए कहता है कि भारत माता का यह ऐसा मंदिर है जिसमें समानता की ही चर्चा होती है। यहाँ पर सभी के कल्याण की वास्तविक कामना की जाती है और यहीं पर सभी को परम सुख रूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है।
इस मंदिर की यह विशेषता है कि यहाँ पर जाति-धर्म या संप्रदाय वाद का कोई भेदभाव नहीं है यानि इस मंदिर में ऐसा कोई व्यवधान या समस्या नहीं है कि कौन किस वर्ग का है। सभी समान हैं। सभी का स्वागत है और सभी को बराबर सम्मान है। कोई किसी भी सम्प्रदाय को मानने वाला हो; चाहे वह हिन्दुओं के इष्टदेव राम हों, मुस्लिमों के इष्ट रहीम हों, चाहे बौद्धों के इष्ट बुद्ध हों या चाहे ईसाइयों के इष्ट ईसामसीह हों यानि इस मंदिर में सभी को बराबर सम्मान है, सभी के स्वरूप का बराबर-बराबर चिन्तन किया जाता है। सभी की ही बराबर पूजा की जाती है।
#SPJ2
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Concept:
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी काव्य जगत् के अनुपम रत्न हैं। इनका जन्म सन् 1886 ई० में चिरगाँव (झाँसी) में हुआ था। इनके पिता सेठ रामचरण गुप्त बड़े ही धार्मिक, काव्यप्रेमी और निष्ठावान् व्यक्ति थे। पिता के संस्कार पुत्र को पूरी तरह प्राप्त थे ।
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"भिन्न-भिन्न भाव संस्कृतियों के गुण-गौरव का ज्ञान यहाँ।"
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"भिन्न-भिन्न भाव संस्कृतियों के गुण-गौरव का ज्ञान यहाँ।"
Explanation:
प्रसंग-प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने समस्त भारतभूमि को भारत माता का मंदिर ( पवित्र स्थल) बताते हुए उसकी विशेषताओं का वर्णन किया है।
व्याख्या-इन पंक्तियों में कवि अपने देश (भारतभूमि) को भारत माता का मंदिर बताते हुए कहता है कि भारत माता का यह ऐसा मंदिर है जिसमें समानता की ही चर्चा होती है। यहाँ पर सभी के कल्याण की वास्तविक कामना की जाती है और यहीं पर सभी को परम सुख रूपी प्रसाद की प्राप्ति होती है।
इस मंदिर की यह विशेषता है कि यहाँ पर जाति-धर्म या संप्रदाय वाद का कोई भेदभाव नहीं है यानि इस मंदिर में ऐसा कोई व्यवधान या समस्या नहीं है कि कौन किस वर्ग का है। सभी समान हैं। सभी का स्वागत है और सभी को बराबर सम्मान है। कोई किसी भी सम्प्रदाय को मानने वाला हो, चाहे वह हिन्दुओं के इष्टदेव राम हों, मुस्लिमों के इष्ट रहीम हों, चाहे बौद्धों के इष्ट बुद्ध हों या चाहे ईसाइयों के इष्ट ईसामसीह होंग यानि इस मंदिर में सभी को बराबर सम्मान है, सभी के स्वरूप का बराबर-बराबर चिन्तन किया जाता है। सभी की ही बराबर पूजा की जाती है।।
अलग-अलग संस्कृतियों के जो गुण हैं, जिनके द्वारा सम्पूर्ण संसार के मर्म को अलग-अलग रूपों में संचित किया गया है वे सभी इस भारत माता के मंदिर में एकत्र हैं अर्थात् भारत माता के इस पावन मंदिर में सम्पूर्ण संस्कृतियों का समावेश है।
काव्यगत सौन्दर्य-
1. अनेकता में एकता का अद्वितीय चित्रण किया गया है।
2. राष्ट्रप्रेम और स्वदेशाभिमान की भावना को प्रेरित किया गया है।
3. भाषा - खड़ी बोली।
4. गुण - प्रसाद ।
5. अलंकार - रूपक, अनुप्रास
6. छन्द- गेय।
7. शैली - मुक्तक ।
8. भावसाम्य-वियोगी हरि द्वारा रचित 'विश्व मंदिर' ।
#SPJ3