1)भारत में समाज कार्य के विकास की पर एक निबंध लिखिए ।
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Explanation:
भारतीय समाज एक परम्परागत समाज रहा है । भारतीय समाज अति प्राचीनकाल में एक प्रकार का साम्यवादी समाज था जिसमें निजी सम्पत्ति का जन्म अभी नहीं हुआ था । निजी सम्पत्ति के जन्म के साथ ‘राजा’ का भी जन्म हुआ एवं युद्ध से जीती गई सम्पत्ति विजेता की हो गई जिसे वितरित करना उसकी अपनी इच्छा पर था । पीडि़तों की सहायता करना प्राचीनकाल से भारत की परम्परा रही है । मजूमदार के अनुसार राजा, व्यापारी, जमींदार तथ अन्य सहायता संगठन धर्म के पवित्र कार्य को सम्पन्न करने के लिए एक दूसरे की सहायता करने में आगे बढ़ने का प्रयत्न करते थे ।
हडप्पा संस्कृति से लेकर बौद्ध काल तक जनता की भलाई के लिए उपदेश दिए जाते थे ।बुद्ध अपने जीवन काल में काफी लोगों को उपदेश दिया करते थे । मौर्यकाल में भी जनता की भलाई के लिए उपदेश दिए गए । अशोक ने भी कहा कि सहायता के लिए मेरी प्रजा किसी भी समय मुझसे मिल सकती है चाहे मैं अन्त:पुर में ही क्यों न रहूँ । गुप्तकाल एवं हर्ष के काल में भी इसी प्रकार की व्यवस्थाएँ देखने को मिलती हैं ।
भारत में जब मुसलमान आये तो उन्होंने भी अपने धर्म के आदेशानुसार दान-पुण्य पर अधिक धन व्यय किया । इस्लाम में ज़कात एक महत्वपूर्ण तत्त्व है जिसके अनुसार प्रत्येक व्यक्ति को प्रतिवर्ष अपनी सम्पत्ति, विशेष प्रकार से धन या स्वर्ण, का ढाई प्रतिशत भाग ज़कात के रूप में व्यय करना आवश्यक है ज़कात की रकम निर्धन एवं अभावग्रस्त व्यक्तियों पर व्यय की जाती है । इसके अतिरिक्त इस्लाम में एक संस्था खैरात की भी है जिसके अनुसार अभावग्रस्त व्यक्तियों की आर्थिक सहायता व्यक्तिगत रूप से की जाती है । इसके लिये कोई दर निश्चित नहीं है और यह इच्छानुसार दी जाती है ।
भारत में काफी अधिक समय से पारसी लोग भी रहते हैं । पारसियों के धर्म में भी दान को बड़ा महत्त्व दिया गया है । पारसियों ने यहाँ धर्मशालाएँ, तालाब, कुयें, विद्यालय आदि बनवाए । उन्होंने बहुत से न्यास स्थापित किये जिनमें से एक प्रसिद्ध न्यास बाम्बे पारसी पंचायत ट्रस्ट फन्ड्स है । इन प्रयास के उद्देश्यों में पारसी विधवाओं की सहायता,पारसी बालिकाओं की विवाह सम्बन्धी सहायता, नेत्रहीन पारसियों की सहायता, निर्धन पारसियों की सहायता,और धार्मिक शिक्षा सम्बन्धी सहायता सम्मिलित है ।
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