1. भारत में उपनिवेशवाद के विभिन्न चरणों :
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भारतीय अर्थव्यवस्था पर ब्रिटिश प्रभाव मुगल शासक औरंगजेब की मृत्यु के बाद सहज ही परिलक्षित होने लगा था। मुगल शासकों द्वारा तत्कालीन यूरोपीय को दी गयी उदारतापूर्वक रियायतों ने स्वदेशी व्यापारियों के हितों को नुकसान पहुंचाया। साथ ही, व्यापार और वाणिज्यिक व्यवस्था भी कमजोर पड़ती गयी। ऐसी स्थिति में यहाँ की घरेलू अर्थव्यवस्था पर नकारात्मक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक ही था।
अंग्रेजो ने प्लासी (1757 ई.) और बक्सर (1764 ई.) के युद्धों के बाद बंगाल की समृद्धि पर अपना अधिकार स्थापित कर लिया। फलतः भारतीय अर्थव्यवस्था अधिशेष तथा आत्मनिर्भरतामूलक अर्थव्यवस्था से औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तित हो गयी। प्लासी के युद्ध के बाद बंगाल के अंतर्देशीय व्यापार में अंग्रेजो की भागीदारी बढ़ गयी। कंपनी के कर्मचारियों ने व्यापार के लिए प्रतिबंधित वस्तुओं जैसे नमक, सुपारी और तंबाकू के व्यापार पर भी अधिकार कर लिया। बंगाल विजय से पूर्व, अंग्रेजी सरकार ने अपने कपड़ा उद्दोग के संरक्षण के लिए विविध प्रयास किए। इनमें भारत से आने वाले रंगीन तथा छपे हुए वस्त्रो के प्रयोग पर इंग्लैण्ड में प्रतिबंध आदि प्रमुख है। भारतीय अर्थव्यवस्था को ब्रिटिश औपनिवेशिक अर्थव्यवस्था में परिवर्तित करने के पीछे ब्रिटिश सरकार का मुख्य उद्देश्य अपने उधोगो के लिए अच्छा व सस्ता माल प्राप्त करना और अपने उत्पादों को भारतीय बाजार में ऊंची कीमतों पर बेचना था।