Hindi, asked by astitva134, 9 months ago


1. 'भारतीवसन्तगीतिः पाठ के श्लोक व उसके अर्थ को लिखें ।
बारांश अपने शन्दों में लिखें

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Answers

Answered by akashkumar02042001
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Answer:

स्वभावो नोपदेशेन शक्यते कर्तुमन्यथा ।

सुतप्तमपि पानीयं पुनर्गच्छति शीतताम् ॥

अर्थ- किसी भी व्यक्ति का मूल स्वभाव कभी नहीं बदलता है. चाहे आप उसे कितनी भी सलाह दे दो. ठीक उसी तरह जैसे पानी तभी गर्म होता है, जब उसे उबाला जाता है. लेकिन कुछ देर के बाद वह फिर ठंडा हो जाता है.

अनाहूतः प्रविशति अपृष्टो बहु भाषते ।

अविश्वस्ते विश्वसिति मूढचेता नराधमः ॥

अर्थ- बिना बुलाए स्थानों पर जाना, बिना पूछे बहुत बोलना, विश्वास नहीं करने लायक व्यक्ति/चीजों पर विश्वास करना…. ये सभी मूर्ख और बुरे लोगों के लक्षण हैं.

यथा चित्तं तथा वाचो यथा वाचस्तथा क्रियाः ।

चित्ते वाचि क्रियायांच साधुनामेक्रूपता ॥

अर्थ- अच्छे लोगों के मन में जो बात होती है, वे वही वो बोलते हैं और ऐसे लोग जो बोलते हैं, वही करते हैं. सज्जन पुरुषों के मन, वचन और कर्म में एकरूपता होती है.

षड् दोषाः पुरुषेणेह हातव्या भूतिमिच्छता ।

निद्रा तद्रा भयं क्रोधः आलस्यं दीर्घसूत्रता ॥

अर्थ- छः अवगुण व्यक्ति के पतन का कारण बनते हैं : नींद, तन्द्रा, डर, गुस्सा, आलस्य और काम को टालने की आदत.

द्वौ अम्भसि निवेष्टव्यौ गले बद्ध्वा दृढां शिलाम् ।

धनवन्तम् अदातारम् दरिद्रं च अतपस्विनम् ॥

अर्थ- दो प्रकार के लोग होते हैं, जिनके गले में पत्थर बांधकर उन्हें समुद्र में फेंक देना चाहिए. पहला, वह व्यक्ति जो अमीर होते हुए दान न करता हो. दूसरा, वह व्यक्ति जो गरीब होते हुए कठिन परिश्रम नहीं करता हो.

त्यजन्ति मित्राणि धनैर्विहीनं पुत्राश्च दाराश्च सहृज्जनाश्च ।

तमर्थवन्तं पुनराश्रयन्ति अर्थो हि लोके मनुष्यस्य बन्धुः ॥

अर्थ- मित्र, बच्चे, पत्नी और सभी सगे-सम्बन्धी उस व्यक्ति को छोड़ देते हैं जिस व्यक्ति के पास धन नहीं होता है. फिर वही सभी लोग उसी व्यक्ति के पास वापस आ जाते हैं, जब वह व्यक्ति धनवान हो जाता है. धन हीं इस संसार में व्यक्ति का मित्र होता है.

यस्तु सञ्चरते देशान् सेवते यस्तु पण्डितान् ।

तस्य विस्तारिता बुद्धिस्तैलबिन्दुरिवाम्भसि ॥

अर्थ- वह व्यक्ति जो विभिन्न देशों में घूमता है और विद्वानों की सेवा करता है. उस व्यक्ति की बुद्धि का विस्तार उसी तरह होता है, जैसे तेल का बून्द पानी में गिरने के बाद फैल जाता है.

परो अपि हितवान् बन्धुः बन्धुः अपि अहितः परः ।

अहितः देहजः व्याधिः हितम् आरण्यं औषधम् ॥

अर्थ- कोई अपरिचित व्यक्ति भी अगर आपकी मदद करे, तो उसे परिवार के सदस्य की तरह महत्व देना चाहिए. और अगर परिवार का कोई अपना सदस्य भी आपको नुकसान पहुंचाए, तो उसे महत्व देना बंद कर देना चाहिए. ठीक उसी तरह जैसे शरीर के किसी अंग में कोई बीमारी हो जाए, तो वह हमें तकलीफ पहुँचाने लगती है. जबकि जंगल में उगी हुई औषधी हमारे लिए लाभकारी होती है.

येषां न विद्या न तपो न दानं ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः ।

ते मर्त्यलोके भुविभारभूता मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति ॥

अर्थ- जिन लोगों के पास न तो विद्या है, न तप, न दान, न शील, न गुण और न धर्म. वे लोग इस पृथ्वी पर भार हैं और मनुष्य के रूप में जानवर की तरह से घूमते रहते हैं.

अधमाः धनमिच्छन्ति धनं मानं च मध्यमाः ।

उत्तमाः मानमिच्छन्ति मानो हि महताम् धनम् ॥

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