CBSE BOARD X, asked by sahilkhan6624, 1 month ago

1.
भारतीय संदर्भ में सांप्रदायिकता का वर्णन करें।​

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Answered by Itz2minback
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Answer:

हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में सांप्रदायिकता पर दृष्टिपात करें तो यह आधुनिक राजनीति के उद्भव का ही परिणाम है। हालाँकि इससे पूर्व भी भारतीय इतिहास में हमें ऐसे कुछ उदाहरण मिलते हैं जो सांप्रदायिकता की भावना को बढ़ावा देते हैं लेकिन वे सब घटनाएँ अपवाद स्वरूप ही रही हैं। उनका प्रभाव समाज एवं राजनीति पर व्यापक स्तर पर नहीं दिखता। वर्तमान संदर्भ में सांप्रदायिकता का मुद्दा न केवल भारत में अपितु विश्व स्तर पर भी चिंता का विषय बना हुआ है।

सांप्रदायिकता की अवधारणा:

सांप्रदायिकता एक विचारधारा है जिसके अनुसार कोई समाज भिन्न-भिन्न हितों से युक्त विभिन्न धार्मिक समुदायों में विभाजित होता है।

सांप्रदायिकता से तात्पर्य उस संकीर्ण मनोवृत्ति से है, जो धर्म और संप्रदाय के नाम पर पूरे समाज तथा राष्ट्र के व्यापक हितों के विरुद्ध व्यक्ति को केवल अपने व्यक्तिगत धर्म के हितों को प्रोत्साहित करने तथा उन्हें संरक्षण देने की भावना को महत्त्व देती है।

एक समुदाय या धर्म के लोगों द्वारा दूसरे समुदाय या धर्म के विरुद्ध किये गए शत्रुभाव को सांप्रदायकिता के रूप में अभिव्यक्त किया जाता है।

यह एक ऐसी विचारधारा का प्रतिनिधित्व करती है, जिसमें सांप्रदायिकता को आधार बनाकर राजनीतिक हितों की पूर्ति की जाती है और जिसमें सांप्रदायिक विचारधारा के विशेष परिणाम के रूप में सांप्रदायिक हिंसा की घटनाएँ होती हैं।

सांप्रदायिकता में नकारात्मक एवं सकारात्मक दोनों ही पक्ष विद्यमान होते हैं।

सांप्रदायिकता का सकारात्मक पक्ष, किसी व्यक्ति द्वारा अपने समुदाय के उत्थान के लिये किये गए सामाजिक और आर्थिक प्रयासों को शामिल करता है।

वहीं दूसरी तरफ इसके नकारात्मक पक्ष को एक विचारधारा के रूप में देखा जाता है जो अन्य समूहों से अलग एक धार्मिक पहचान पर ज़ोर देता है, जिसमें दूसरे समूहों के हितों को नज़रअंदाज़ कर पहले अपने स्वयं के हितों की पूर्ति करने की प्रवृत्ति देखी जाती है।

भारतीय संदर्भ में सांप्रदायिकता का विकास

निश्चित तौर पर प्राचीन काल में समाज विभिन्न वर्गों एवं धर्मों में विभक्त था, बावजूद इसके हमें भारतीय समाज में सांप्रदायिकता के आधार पर हुई हिंसा के बारे में कोई जानकारी नहीं मिलती है।

मौर्य काल में भी अशोक के शिलालेखों में धार्मिकता, सहिष्णुता के बारे में जानकारी मिलती है जिसमें उसकी धम्म नीति की चर्चा विशेष रूप से उल्लेखनीय है।

मध्यकाल में अकबर द्वारा ‘दीन -ए इलाही’ की स्थापना भी सभी धर्मों को समान भाव से देखने से ही संबंधित थी।

हालाँकि औरंगज़ेब द्वारा कुछ ऐसे कार्य किये गए जिन्हें धार्मिक दृष्टि से असहिष्णु कहा जा सकता है, जैसे-मंदिरों को तोड़ना, ज़बरन धर्मांतरण, सिख गुरु की हत्या आदि लेकिन ये सभी घटनाएँ सामान्य तौर पर घटित न होकर अपवाद स्वरूप ही थीं। हिंदू एवं मुस्लिम दोनों अपने आर्थिक हितों को साझा करते थे तथा दोनों ही शांतिपूर्वक सह-अस्तित्व में विश्वास रखते थे।

भारत में सांप्रदायिकता के वर्तमान स्वरूप की जड़ें अंग्रेजों के आगमन के साथ ही भारतीय समाज में स्थापित हुई। यह उपनिवेशवाद का प्रभाव तथा इसके खिलाफ उत्पन्न संघर्ष की आवश्यकता का प्रतिफल थीं।

हालाँकि 1857 के विद्रोह के समय भी हिंदू-मुस्लिम एकजुट होकर सामने आए परंतु इसके बाद स्थितियों में परिवर्तन आया तथा अंग्रेज़ों द्वारा ‘फूट डालो राज करो’ की नीति के माध्यम से भारत में अपने हितों की पूर्ति की गई। इसके लिये उनके द्वारा समय-समय पर ‘सांप्रदायिक कार्ड’ का प्रयोग किया गया।

वर्ष 1905 में बंगाल विभाजन का कारण बेशक प्रशासनिक असुविधा को बताया गया परंतु इसे सांप्रदायिकता को आधार बनाकर ही पूरा किया गया।

वर्ष 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना हिंदू-मुस्लिम सांप्रदायिकता को आधार बनाकर की गई।

वर्ष 1909 का मार्ले-मिंटो सुधार/ भारत शासन अधिनियम, जिसमें मुस्लिम वर्ग के लिये पृथक निर्वाचन मंडल की बात की गई, हिंदू-मुस्लिम एकता को कमज़ोर करने तथा दोनों वर्गों के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न करने के लिये ही लाया गया था।

वर्ष 1932 में ‘कम्यूनल अवॉर्ड’ की घोषणा विभिन्न समुदायों को संतुष्ट करने के लिये की गई। इससे सांप्रदायिक राजनीति को और अधिक बढ़ावा मिला।

वर्ष 1940 के लाहौर अधिवेशन में पृथक राज्य के रूप में एक मुस्लिम बहुल क्षेत्र पाकिस्तान की मांग करना सांप्रदायिकता की भावना से ही प्रेरित थी।

वर्ष 1947 में भारत का विभाजन हुआ । हालाँकि यह विभाजन स्वतंत्रता के बाद हुआ परंतु इसका आधार तैयार करने में जहाँ सामाजिक, राजनीतिक कारण मुख्य रूप से उत्तरदायी थे तो वहीं सांप्रदायिक कारण भी समानांतर विद्यमान थे।

सांप्रदायिकता के आधार पर राजनीति का यह क्रम यही पर नहीं रुका बल्कि आज़ादी के बाद भी आज तक भारतीय समाज एवं राजनीति में उपस्थित है।

सांप्रदायिकता के कारण:

वर्तमान परिदृश्य में सांप्रदायिकता की उत्पत्ति के लिये किसी एक कारण को पूर्णत: ज़िम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता बल्कि यह विभिन्न कारणों का एक मिला-जुला रूप बन गया है। सांप्रदायिकता के लिये ज़िम्मेदार कुछ महत्त्वपूर्ण कारण इस प्रकार हैं-

Answered by ericaeveespaldon028
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हम भारतीय परिप्रेक्ष्य में सांप्रदायिकता पर दृष्टिपात करें तो यह आधुनिक राजनीति के उद्भव का ही परिणाम है। हालाँकि इससे पूर्व भी भारतीय इतिहास में हमें ऐसे कुछ उदाहरण मिलते हैं जो सांप्रदायिकता की भावना को बढ़ावा देते हैं लेकिन वे सब घटनाएँ अपवाद स्वरूप ही रही हैं। उनका प्रभाव समाज एवं राजनीति पर व्यापक स्तर पर नहीं दिखता। वर्तमान संदर्भ में सांप्रदायिकता का मुद्दा न केवल भारत में अपितु विश्व स्तर पर भी चिंता का विषय बना हुआ है।

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