Hindi, asked by reetasurendra563, 5 months ago

1. भारतवर्षः उत्सवानां देशः। अत्र बहवः उत्सवाः भवन्ति ये भारतीयां संस्कृति प्राचीनकालात् अद्य यावत्
समुज्जीवयन्ति। उत्सवाः मानवमनसः उदात्तं भावं प्रकटयन्ति। उत्सवै: मानव: नवम् उत्साह, जागृतिं नवोल्लासंवा
प्राप्नोति। वस्तुत: मानव: उत्सवप्रियः प्राणी भवति। यदा तस्य जीवने किमपि सुखमयं क्षणम् आयाति, तदा सः
स्वानन्दस्य प्रकटीकरणम् उत्सवानां माध्यमेन करोति। एते अस्माकं जीवनं रसमयं कुर्वन्ति।​

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Answered by Sasmit257
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Explanation:

Answer:

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नारी अपने परिवार की आधारशिला होती है।वर्तमान युग।

दोहरी भूमिका निभा रही है। वह पुरुषों के साथ कंधे से की

मिलाकर चल रही है। उसने जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में अपनी

पहचान बना ली है। राजनीति क्षेत्र हो, चाहे चिकित्सा क्षेत्र

प्रशासनिक क्षेत्र वह हर क्षेत्र में अपनी कार्यक्षमता का कुश

परिचय दे रही है। आज सेना तथा पुलिस-सेना में भी महि

कार्य कर रही हैं।हमारे देश की भूतपूर्व राष्ट्रपति श्रीमती प्रति

पाटिल भी महिला थी जिन्होंने प्रशासन का कार्य सफलता

निभाया था।कहा जाता है कि हमारा लोकतंत्र यदि कहीं कमजोर है तो उसकी एक बड़ी वजह हमारे राजनैतिक दल हैं। वह प्रायः

अव्यवस्थित और अमर्यादित हैं और अधिकांशतः निष्ठा और कर्मठता से संपन्न नहीं है। हमारी राजनीति का स्तर

प्रत्येक दृष्टि से गिरता जा रहा है। लगता है उसमें सुयोग्य और सच्चरित्र लोगों के लिए कोई स्थान नहीं है। लोकतंत्र के

मूल में लोक निष्ठा होनी चाहिए, लोकमंगल की भावना और लोक अनुभूति होनी चाहिए, लोक संपर्क होना चाहिए।

हमारे लोकतंत्र में इन आधारभूत तत्वों की कमी होने लगी है इसलिए लोकतंत्र कमजोर दिखाई पड़ता है। हम प्रायः

सोचते हैं कि हमारा देशप्रेम कहां चला गया, देश के लिए कुछ करने, मर-मिटने की भावना कहां चली गई? त्याग और

बलिदान के आदर्श कैसे, कहां लुप्त हो गए? आज हमारे लोकतंत्र को स्वार्थाधता का घुन लग गया है। क्या राजनीतिज्ञ,

क्या अफसर अधिकांश यही सोच रखते हैं कि वे किस तरह से स्थिति का लाभ उठाएं, किस तरह एक दूसरे का इस्तेमाल

करें। आम आदमी अपने आप को लाचार पाता है और ऐसी स्थिति में उसकी लोकतांत्रिक आस्था डगमगाने लगती हैं।

लोकतंत्र की सफलता के लिए हमें समर्थ और सक्षम नेतृत्व चाहिए, एक नई दृष्टि, एक नई प्रेरणा, एक नई संवेदना,

नया आत्मविश्वास, नया संकल्प और समर्पण आवश्यक है। लोकतंत्र की सफलता के लिए हम सब अपने आप से पूछे

कि हम देश के लिए क्या कर सकते हैं और हम सिर्फ पूछ कर ही न रह जाएं बल्कि संगठित होकर समझदारी, विवेक

और संतुलन से लोकतंत्र को सफल और सार्थक बनाने में लग जाएं।

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