World Languages, asked by Anonymous, 4 months ago

1. भक्त भगवान् के दर को छोड़कर किसी अन्य के दर पर जाना
क्यों पसन्द नहीं करता?
2.भगवान् की याद भुलाने का क्या परिणाम हुआ?
3. भक्त भगवान् से क्यों शर्म महसूस करता है?
4. भगवान् से मिलने में भक्त को कौन रुकावट पैदा करते हैं?
5.भक्त के होश में आने का क्या उपाय है?​

Answers

Answered by sujal1247
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Answer:

उत्तर-6 जो मनुष्य अपने सब कर्मों को परमात्मा की सेवा में अर्पण कर देता है वही सच्चा भक्त है | इसका भाव यह है कि-जो भी कर्म किये जाएँ फल सहित उनको अर्पण कर देना सच्ची ईश्वर भक्ति कहलाती है | यह बात ध्यान रखनी चाहिए हमारे मन,वचन,कर्म ऐसे हों कि- जब भी कोई वस्तु भेंट करें तो भक्त को प्रभु के सामने शर्म न आए ,लज्जा न आए | अर्थात् जो पुरूष सब कर्मों को परमात्मा को अर्पण करके , स्वार्थ को त्याग करके कर्म करेगा वह जल में कमल के पत्ते के समान पाप से बचा रहेगा | यही ईश्वरप्रणिधान का भाव है |

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