1. बढ़ते विज्ञापन के युग में आज हमारी परंपराओं का अवमूल्यन हो रहा है। आस्थाओं का क्षरण हुआ है तथा हम पश्चिमी का अंधानुकरण करते हुए प्रतिष्ठा के झूठे प्रतिमान अपना कर स्वयं को आधुनिकता के नाम पर छल रहे हैं।
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