| 1. एक यौगिक सूक्ष्मदर्शी के अभिदृश्यक-लेन्स द्वारा आवर्धन 8 है।
यदि सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन-क्षमता 32 हो, तो अभिनेत्र-लेन्स द्वारा
आवर्धन ज्ञात कीजिए।
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Answer:
Explanation:
संरचना : इसमें धातु की एक बेलनाकार नली के एक सिरे पर कम फोकस दूरी एवं छोटे द्वारक (aperture) का उत्तल लेंस लगा होता है, जिसे अभिदृश्यक लेन्स (objective lens) O कहते हैं| नली के दुसरे सिरे पर एक अन्य नली लगी होती है, जिसके बाहरी सिरे पर अधिक फोकस दुरी तथा बड़े द्वारक वाला एक दूसरा उत्तल lens लगा होता है, जिसे नेत्रिका अथवा अभिनेत्र लेंस (Eye Lens) E कहते हैं| नेत्रिका के फोकस पर क्रॉस तार लगे रहते हैं| उपकरण में लगी दन्तुर दण्ड-चक्र व्यवस्था द्वारा प्रथम नली को दूसरी नली के भीतर आगे अथवा पीछे खिसकाकर अभिदृश्यक व अभिनेत्र लेंस के बीच की दूरी को बदला जा सकता है|
समायोजन :सर्वप्रथम नेत्रिका को आगे-पीछे इस प्रकार समायोजित करते हैं कि क्रॉस तार स्पष्ट दिखाई दें| अब वस्तु को अभिदृश्यक लेंस के ठीक सामने, फोकस दूरी से कुछ अधिक दूरी पर रखते हैं तथा दन्तुर दण्ड-चक्र व्यवस्था से पूरी नली को इस प्रकार समायोजित करते हैं कि वस्तु का प्रतिबिम्ब क्रॉस तार पर बने तथा प्रतिबम्ब और क्रॉस तार लम्बन न रहे| इस अवस्था में वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब दिखाई देता है|
प्रतिबिम्ब का बनना : चित्र 5.1 में अभिदृश्यक लेंस तथा नेत्रिका दिखाए गए हैं| माना AB एक बहुत छोटी वस्तु है जो अभिदृश्यक लेंस O के प्रथम फोकस F1’ से कुछ बाहर रखी है| अभिदृश्यक लेंस O द्वारा AB का वास्तविक, उल्टा तथा बड़ा प्रतिबिम्ब A1B1 नेत्रिका E व इसके प्रथम फोकस F2’ के बीच में कहीं बनता है| यह प्रतिबिम्ब A1B1 नेत्रिका E के लिए वस्तु का कार्य करता है और नेत्रिका, A1B1 का आभासी, सीधा तथा A1B1 से बहुत बड़ा प्रतिबिम्ब A2B2 बनाती है| B2 की स्थिति ज्ञात करने के लिए B1 से दो बिन्दुदार (.........) किरणें लेते हैं| एक किरण, जो मुख्य अक्ष के समान्तर है, नेत्रिका E से निकलकर इसके द्वितीय फोकस F2 से होकर जाती है| दूसरी किरण नेत्रिका के प्रकाशिक केंद्र से होकर सीधी चली जाती है| ये दोनों किरणें पीछे की ओर बढ़ाने पर B2 पर मिलती हैं| इस प्रकार प्रतिबिम्ब A2B2 प्राय: स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दुरी पर बनता है| यदि अभिदृश्यक द्वारा बनी वस्तु AB का प्रतिबिम्ब A1B1 नेत्रिका के प्रथम फोकस F2’ पर बने तो नेत्रिका द्वारा अंतिम प्रतिबिम्ब अनन्त पर बनेगा|
image construction first
आवर्धन क्षमता :
1. यदि अंतिम प्रतिबिम्ब स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी Dपर बनता है तो संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता m = -v0/u0(1+D/fe) इस स्थिति में सूक्ष्मदर्शी की लम्बाई (v0+u0) होगी|
2. यदि अंतिम प्रतिबिम्ब अनंत पर बनता है, संयुक्त सूक्ष्मदर्शी की आवर्धन क्षमता m = -v0/u0× D/fe इस स्थिति में सूक्ष्मदर्शी की लम्बाई (v0+ fe) होगी|
जहाँ, u0 = AB की अभिदृश्यक लेंस से दूरी, v0= A1B1 की अभिदृश्यक लेंस O से दूरी, fe = नेत्रिका की फोकस दूरी| र्नित्मक चिन्ह यह प्रकट कर रहा है की प्रतिबिम्ब उल्टा बन रहा है|
उपयोग : आधुनिकतम सूक्ष्मदर्शी के द्वारा छोटी-छोटी वस्तुओं को कई हजार गुना बड़ा देखा जा सकता है|
इसका उपयोग जन्तु विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, सूक्ष्म परीक्षणों में पैथ्लोजिस्ट द्वारा किया जाता है|
खगोलीय दूरदर्शी : यह एक ऐसा प्रकाशित यंत्र है जिसकी सहायता से दूर स्थित वस्तुओं तथा आकाशीय पिंडो; जैसे चंद्रमा, तारे देखने के लिए उपयोग किया जाता है|
संरचना : जिसमें धातु की एक लम्बी बेलनाकार नली होती है| जिसमें एक सिरे पर अधिक फोकस दूरी और बड़े द्वारक वाला एक उत्तल लेंस O लगा रहता है| जिसे अभिदृश्यक लेंस कहते हैं| इस नली के दूसरी ओर एक अन्य छोटी नली लगी होती है, जिसके बाहरी सिरे पर एक कम फोकस दूरी एवं छोटे द्वारक का उत्तल लेंस (E) लगा होता है| जिसे अभिनेत्र लेंस या नेत्रिका कहते हैं|
समायोजन : सर्वप्रथम, नेत्रिका को आगे-पीछे खिसकाकर क्रॉस-तार पर फोकस कर लेते हैं| अब जिस दूरस्थ वस्तु को देखना होता है अभिदृश्यक लेंस को उस वस्तु की ओर कर देते हैं| अब दन्तुर दण्ड-चक्र वयवस्था से अभिदृश्यक लेंस की क्रॉस-तार से दूरी इस प्रकार समायोजित करते हैं कि वस्तु के प्रतिबिम्ब तथा क्रॉस टार के बिच कोई लम्बवन न रहे| इस स्थिति में, वस्तु का स्पष्ट प्रतिबिम्ब दिखाई देता है|
प्रतिबिम्ब का बनना : चित्र के अनुसार अभिदृश्यक लेंस और नेत्रिका दिखाया गया है| माना बहुत दूर स्थित वास्तु AB से आने वाली समांतर किरणें अभिदृश्यक लेंस O के द्वितीय फोकस (F) पर वास्तु का वास्तविक, उल्टा एवं वास्तु से छोटा प्रतिबिम्ब A1B1 बनती है| अब नेत्रिका E को इस प्रकार समायोजित करते हैं कि प्रतिबिम्ब A1B1, नेत्रिका E के प्रथम फोकस F2’ तथा नेत्रिका के बिच बने| यह प्रतिबिम्ब A1B1 नेत्रिका के लिए आभासी वस्तु का काम करता है और नेत्रिका A1B1का सीधा, आभासी तथा बड़ा प्रतिबिम्ब A2B2 बनती है जो स्पष्ट दृष्टि की न्यूनतम दूरी तथा अनंत के बिच बनता है| बिंदु B2 की स्थिति ज्ञात करने के लिए