1 है री! मैं तो प्रेम दिवाणी, मेरो दरद न जाणे कोय। मैं जाणै सूली ऊपर सेज हमारी, सोवण किस विधि होय।। गगन मंडल पर सेज पिया की, किस विधि मिलणा होय। घायल की गति घायल जाणै, की जिण लाई होय।। जौहरि की गति जौहरी जाणै, की जिण जौहर होय। दरद की मारी बन-बन डोलूँ, बैद मिल्या नहिं कोय।। मीरा की प्रभु पीर मिटेगी, जब बैद साँवलिया होय।।4।।
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