India Languages, asked by nishant7004, 7 months ago

1. हितभुक् का क्या अर्थ है?
2. रोगी न होने के लिए भोजन में किन-किन बातों का ध्यान रखना
चाहिए?
3. चरक मुनि ने पक्षी बनकर ‘कोऽरुक्' का प्रश्न वैद्यों से क्यों किया?
4. मितभुक् न होने का क्या परिणाम हो सकता है?
5. पाप का अन्न खाने का क्या परिणाम होता है?​

Answers

Answered by srushtithombare8
11

Explanation:

को… रुक, को… रुक, को … रुक। हितभुक्, मितभुक्, ऋतभुक्। संस्कृत की इस छोटी सी लोकोक्ति में मनुष्य के स्वास्थ्य रक्षा के समस्त सूत्र निहित हैं। कैंसर और एड्स जैसे असाध्य प्रतीत होने वाले रोगों से पीड़ित इस विश्व में आधुनिक चिकित्सा विज्ञान ने अद्भुत प्रगति की है। आज यह ईश्वर से होड़ लेने की चेष्टा में मानव अंगों के प्रत्यारोपण से लेकर उनके विकास तक की बातें कर रहा है।

परंतु इसका दु:खद पहलू यह है कि चिकित्सा विज्ञान की इन तमाम प्रगतियों के बाद भी पुरानी बीमारियां तो बनी ही हुई हैं, और ढेर सारी नई घातक बीमारियां पैदा भी हो रही हैं, चाहे वह कैंसर हो या एड्स या हैपेटाइटिस बी। पुरानी बीमारियों के भी नए विकसित रूप सामने आ रहे हैं। मोटापा जैसी सामान्य चीज गंभीर बीमारी बनती जा रही है। इसे हम आधुनिक चिकित्सा विज्ञान की प्रगति की सफलता मानें या असफलता?

आज यह लगभग साफ हो गया है कि पर्याप्त प्रचार और लोकप्रियता के बाद भी आधुनिक चिकित्सा प्रणाली की अपनी सीमाएं हैं। न तो वह मनुष्य शरीर को संपूर्णता में देखती है और न ही उसका संपूर्णता से इलाज कर सकती है।

आज से 96 वर्ष पूर्व 1909 में महात्मा गांधी ने इसकी आलोचना करते हुए इसे देश के लिए अत्यंत हानिकारक बताया था। उन्होंने इस प्रणाली की व्यावसायिकता पर भी प्रश्नचिन्ह खड़ा किया था। आज हम पाते हैं कि बाजारवाद इस पर इस कदर हावी हो चुका है कि यह उत्तरोत्तर महंगी और आम आदमी की पहुंच से बाहर होती जा रही है। आज कोई भी सिर्फ सेवा करने के लिए चिकित्सक नहीं बनता और चिकित्सक बनना भी अब बाजार की शक्तियों के नियंत्रण में है। इसके लिए आपको चार से लेकर दस लाख रूपए तक खर्च करने पड़ते हैं। वह रूपया जुटाने के लिए फिर इसी बाजार के अंग आपको प्रमाण देते हैं। उस प्रमाण को चुकाने के लिए यह तो निश्चित ही है कि आप सेवा नहीं कर सकते। बाजारवाद का चंगुल इस प्रणाली पर कुछ इस तरह कसा हुआ है कि भारत में कौन सी दवाएं या स्वास्थ्य साधन नि:शुल्क वितरित किए जाएं, यह भी अंतरराष्ट्रीय संस्थाएं ही तय करती हैं। उन्हें मलेरिया और डायरिया की तुलना में एड्स अधिक गंभीर बीमारी दिखती है और इसलिए गांव-गांव में जितना ओ.आर.एस. के पैकेट और कुनैन का प्रचार नहीं होता, उससे अधिक कंडोम का प्रचार किया जाता है।

स्वास्थ्य और चिकित्सा के इस गंभीर प्रश्न पर विचार करते समय अक्सर एक तथ्य भुला दिया जाता है कि भारत एक प्राचीन राष्ट्र है और इसकी अपनी परंपराएं हैं। हजारों वर्षों की लंबी पंरपरा वाले इस राष्ट्र में एक स्वास्थ्य प्रणाली भी विकसित हुई थी जो यहां के परिवेश, पारिस्थितिकी और लोगों के अनुकूल थी। भारत पर विदेशियों के शासन के दौरान निरंतर हुई उपेक्षा और अंग्रेजों द्वारा उसे प्रतिस्थपित कर नई प्रणाली के चलन को बढ़ावा देने के बाद भी वह प्राचीन स्वास्थ्य प्रणाली मरी नहीं, जीवित रही, चलती रही। स्वाधीनता के बाद सरकार यदि चाहती तो उस प्राचीन भारतीय स्वास्थ्य प्रणाली को पुन: विकसित और प्रतिष्ठित किया जा सकता था परंतु पश्चिम की चकाचौंध से चुंधियायी पंडित नेहरू की सरकार की एक सदस्य और भारत की पहली स्वास्थ्य मंत्री राजकुमारी अमृत कौर को न तो भारतीय परंपराओं की जानकारी और समझ थी और न ही उस पर उन्हें कोई गर्व था। उन्होंने संसद में यह घोषणा की थी कि सरकार वैज्ञानिक पद्धति एलौपैथी का ही प्रचार-प्रसार करेगी, प्राचीन चिकित्सा पद्धति के अंधविश्वासों का नहीं। बिहार के एक सांसद के विरोध पर उन्होंने अपना वक्तव्य तो वापस ले लिया परंतु उनकी मंशा वही बनी रही। यही कारण है कि देश के कोने-कोने में सरकार ने जो भी स्वास्थ्य केंद्र खोले, वे ऐलोपैथी चिकित्सा ही उपलब्ध कराते थे। इसके कालेज और अस्पतालों की बाढ़ आ गई और भारतीय चिकित्सा प्रणाली के कालेज और अस्पताल उपेक्षा के शिकार बने रहे। परंतु अब धीरे-धीरे आधुनिक चिकित्सा प्रणाली का कड़वा सच सामने आ रहा है और उससे लोगों का मोहभंग भी हो रहा है। लोग अब आयुर्वेद, योग प्राकृतिक चिकित्सा, होम्योपैथी जैसे विकल्पों की ओर आकर्षित होने लगे हैं।

आधुनिक चिकित्सा प्रणाली के पैराकार आयुर्वेद, योग प्राकृतिक चिकित्सा आदि पर ढेर सारे प्रश्न खड़े करते हैं। ये प्रणालियां कालबाह्य हो गई हैं, श्रमसाध्य हैं, समय लेती हैं, तुरंत लाभ नहीं देतीं, इनमें शल्य चिकित्सा नहीं है, आज की तेज गति की जिंदगी के साथ नहीं चल सकतीं आदि आदि। परंतु धयान देने की बात यह है कि भारतीय चिकित्सा प्रणाली आधुनिक चिकित्सा प्रणाली की तरह केवल मनुष्य के शारीरिक स्वास्थ्य से जुड़ी हुई नहीं है। यह एक पूरी जीवन पद्धति है। आधुनिक चिकित्सा प्रणाली में केवल रोगों का इलाज होता है परंतु आयुर्वेद और योग प्राकृतिक चिकित्सा मनुष्य के संपूर्ण आहार विहार और जीवन को निर्देशित करती है। कहते हैं कि चरक ने पूछा था – को… रुक, को… रुक, को… रुक। अर्थात् कौन स्वस्थ है, कौन स्वस्थ है, कौन स्वस्थ है? उनके एक शिष्य ने सही उत्तर दिया था – हितभुक, मितभुक, ऋतभुक। अर्थात् जो शरीर के लिए हितकारी भोजन करता है, कम भोजन करता है और उचित कमाई का भोजन करता है। इस प्रकार आयुर्वेद स्वास्थ्य का संबंध शरीर के साथ-साथ धन अर्जित करने के तरीके से भी मानता

Answered by shonamjoshi
9

Explanation:

हितभुक का अर्थ है ऐसी वस्तुएं खाने वाला जो स्वास्थ्य के लिए हितकर है अच्छा है ।

Similar questions