Hindi, asked by jjain4167, 6 months ago

1. हितभुक् का क्या अर्थ है?
2. रोगी न होने के लिए भोजन में किन-किन बातों का ध्यान रखना
चाहिए?
3. चरक मुनि ने पक्षी बनकर ‘कोऽरुक्' का प्रश्न वैद्यों से क्यों किया?
4. मितभुक् न होने का क्या परिणाम हो सकता है?
5. पाप का अन्न खाने का क्या परिणाम होता है?​

Answers

Answered by harshgoyal4934
2

Answer:

answer 1

हितभुक्, मितभुक्, ऋतभुक्। संस्कृत की इस छोटी सी लोकोक्ति में मनुष्य के स्वास्थ्य रक्षा के समस्त सूत्र निहित हैं। ... न तो वह मनुष्य शरीर को संपूर्णता में देखती है और न ही उसका संपूर्णता से इलाज कर सकती है

answer 2

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भोजन के नियम : * भोजन की थाली को पाट पर रखकर भोजन किसी कुश के आसन पर सुखासन में (आल्की-पाल्की मारकर) बैठकर ही करना चाहिए।

* कांसे के पात्र में भोजन करना निषिद्ध है।

* भोजन करते वक्त मौन रहने से लाभ मिलता है।

* भोजन भोजन कक्ष में ही करना चाहिए।

* भोजन करते वक्त मुख दक्षिण दिशा में नहीं होना चाहिए।

* जल का गिलास हमेशा दाईं ओर रखना चाहिए।

* भोजन अँगूठे सहित चारों अँगुलियों के मेल से करना चाहिए।

* परिवार के सभी सदस्यों को साथ मिल-बैठकर ही भोजन करना चाहिए।

* भोजन का समय निर्धारित होना चाहिए।

* दो वक्त का भोजन करने वाले के लिए जरूरी है कि वे समय के पाबंद रहें।

* संध्या काल के अस्त के पश्चात भोजन और जल का त्याग कर दिया जाता है।शास्त्र कहते हैं कि योगी एक बार और भोगी दो बार भोजन ग्रहण करता है। रात्रि का भोजन निषेध माना गया है। भोजन करते वक्त थाली में से तीन ग्रास (कोल) निकालकर अलग रखे जाते हैं तथा अंजुली में जल भरकर भोजन की थाली के आसपास दाएँ से बाएँ गोल घुमाकर अंगुली से जल को छोड़ दिया जाता है।

अंगुली से छोड़ा गया जल देवताओं के लिए और अंगूठे से छोड़ा गया जल पितरों के लिए होता है। यहाँ सिर्फ देवताओं के लिए जल छोड़ा जाता है। यह तीन कोल ब्रह्मा, विष्णु और महेश के लिए या मन कथन अनुसार गाय, कौआ और कुत्ते के लिए भी रखा जा सकता है।* जैसा खाओगे अन्न वैसा बनेगा मन। भोजन शुद्ध और सात्विक होना चाहिए। शास्त्रों में कहा गया है कि सात्विक भोजन से व्यक्ति का मन सकारात्मक सोच वाला व मस्तिष्क शांतिमय बनता है। इससे शरीर स्वस्थ रहकर निरोगी बनता है।

* राजसिक भोजन से उत्तेजना का संचार होता है जिसके कारण व्यक्ति में क्रोध तथा चंचलता बनी रहती है।

* तामसिक भोजन द्वारा आलस्य, अति नींद, उदासी, सेक्स भाव और नकारात्मक धारणाओं से व्यक्ति ग्रसित होकर चेतना को गिरा लेता है।

सात्विक भोजन से व्यक्ति चेतना के तल से उपर उठकर निर्भीक तथा होशवान बनता है और ता‍मसिक भोजन से चेतना में गिरावट आती है जिससे व्यक्ति मूढ़ बनकर भोजन तथा संभोग में ही रत रहने वाला बन जाता है। राजसिक भोजन व्यक्ति को जीवनपर्यंत तनावग्रस्त, चंचल, भयभीत और अति-भावुक बनाए रखकर संसार में उलझाए रखता है।

answer 5

जिसके दिल में रहम नहीं है, जो बड़े से बड़ा पाप करने में न हिचके, जो जीवों को कष्ट देता है, जो गाय को सताता है, उस व्यक्ति के घर भोजन नहीं करना चाहिए। अगर कोई उसके घर का अन्न खाता है तो वह पाप का भागीदार बनता है। ऐसा अन्न मनुष्य के मन में दुर्गुणों को बढ़ावा देता है, उसे पतन की ओर लेकर जाता है।

Explanation:

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Answered by Anonymous
3

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