1. हमारे ऊपर अपनी मातृभूमि का क्या-क्या ऋण हो सकता है?
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हमारे ऊपर अपनी मातृभूमि के बहुत सारे ऋण है | जिस प्रकार हम अपने माता-पिता का ऋण कभी नहीं दे सकते उसी प्रकार हम मातृभूमि का ऋण कभी नहीं चूका सकते | मातृभूमि ने हमें जीवन दिया है |
मातृभूमि ने हमें रहने के लिए घर दिया है | जिस पर हम रहते है | इतना सुन्दर वातावरण दिया है |
मातृभूमि व उसकी जलवायु का हमारे जन्म, जीवन, शरीर के निर्माण व सुखों में बहुत बड़ा भाग होता है। जहां-जहां हमारा पालन पोषण होता है उनका ऋण हमारे ऊपर होता है। .
हमें सदैव और मातृभूमि की सेवा करनी चाहिए। मातृभूमि को सफ रखना हमारा कर्तव्य है| मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है।
इनके प्रति. ... इनके प्रति समर्पित रहने से हम अनेक प्रकार के ऋण से मुक्त हो जाते हैं।
हमारे ऊपर अपनी मातृभूमि का क्या-क्या ऋण हो सकता है?
हमारी मातृभूमि का सबसे बड़ा ऋण तो ये है कि हमने उसकी गोद में जन्म लिया। ये ऋण के माँ के ऋण के समान है। अतः हमें सबसे पहले अपनी माँ का ऋण चुकाना है। वो देश जिसमें हमने जन्म लिया वो हमारी मातृभूमि कहलाती है। उस मातृभूमि ने हमें इतना कुछ दिया। हम इसकी मिट्टी में पले-बढ़े, शिक्षा-दीक्षा ली, यहीं पर हम सभ्य और संस्कारी बने। हम इस योग्य बने कि इस जीवन में कुछ कर सकें तो हमारा दायित्व बनता है कि हम भी अपनी इस मातृभूमि को बस सब लौटायें जो हमें इससे मिला।
इसके लिये ये आवश्यक है कि हम अपनी माँ की तरह अपनी मातृभूमि का ध्यान रखें।
इसी मातृभूमि पर हमें शिक्षा-दीक्षा मिली जिसने हमे सभ्य और संस्कारी बनाया तो हम पर ये मातृभूमि का ऋण हुआ, अतः हमारा कर्तव्य है कि हम भी अपनी आगे की पीढ़ी को शिक्षा प्राप्त करने में सहयोग देकर मातृभूमि के प्रति उसका ऋण चुकायें।
इसी मातृभूमि ने हमें समाज में रहने योग्य बनने के लिए अच्छे संस्कार दिए। अपने विचारों को व्यक्त करने के लिए माध्यम के रूप में भाषा दी और हमें एक सुंदर इतिहास और विरासत दी, जिस पर हम गर्व कर सके। हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम इस परंपरा को जारी रखें अपनी संस्कृति की रक्षा करें। अपनी भाषा का सम्मान करें। अपनी इतिहास और विरासत को संजो कर रखें और अपने आगे वाली पीढ़ी को आगे बढ़ाते रहें।
इसी मातृभूमि ने हमें अपनी गोद में पाला है, हमें बड़ा किया है, हमें एक सुरक्षा का कवच दिया है। हमारा भी यह कर्तव्य बनता है कि जब भी इस मातृभूमि पर कुछ आँच आए तो हम भी उसकी रक्षा करें और उसके लिए अपनी जान न्योछावर करने के लिए सदैव तत्पर रहें।
संविधान के रूप में और नैतिक शिक्षा के रूप इसी मातृभूमि ने हमें अनुशासन का पाठ पढ़ाया है तो हमारा भी कर्तव्य बनता है कि हम जीवन-पर्यन्त मातृभूमि के संविधान का पालन करते रहें जिससे हम उसके ऋण बोझ को कुछ हल्का कर सकें।
यूं तो हम सब में वो सामर्थ्य नही कि हम मातृभूमि का ऋण पूरी तरह से चुका सकें लेकिन हम कुछ हद तक अपनी मातृभूमि का ऋण तो चुका ही सकते हैं।