1. जब क्रिया के व्यापार का प्रधान विषय कर्ता होता है उसे कहते है
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क्रिया का वह रुप, जिससे यह जाना जाय कि वाक्य की क्रिया के विधान (व्यापार) का मुख्य विषय कर्ता है, उसे कर्तृवाच्य कहते है । इसमे क्रिया के लिंग, वचन और पुरुष सदा कर्ता के अनुसार रहते है । इसमें अकर्मक और सकर्मक दोनों क्रियाओं का प्रयोग होता है l
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