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जग में सचर अचर जितने हैं सारे कर्म-निरत हैं।
धुन में एक न एक सभी को सब के निश्चित प्रत है।
जीयन भर आतप सह वसुधा पर छाया करता है।
तुच्छ पत्र की भी स्वकर्म में कैसी तत्परता है।
रवि जग में शोभा सरसाता सोम सुधा बरसाता।
सब है लगे कर्म में कोई निष्क्रिय दृष्टि न आता।
है उददेश्य नितान्त तुच्छ तृण के भी लघु जीवन का।
उसी पूर्ति में वह करता है अंत कर्ममय तन का।।
तुम मनुष्य हो, अमित बुद्धि- -बल विलसित जन्म तुम्हारा।
क्या उद्देश्य-रहित है जग में तुमने कभी विचारा?
बुरा न मानो, एक बार सोचो तुम अपने मन में |
क्या कर्त्तव्य समाप्त कर लिये तुमने निज जीवन में?
जिस पर गिर कर उदर दरी से तुमने जन्म लिया है।
जिसका खाकर अन्न सुधा-सम नीर समीर पिया है।
यह स्नेह की मूर्ति दयामयि माता-तुल्यमही है।
उसके प्रति कर्तव्य तुम्हारा क्या कुछ शेष नहीं है।।
निम्नलिखित में से निर्देशानुसार सबसे उचित विकल्पों का चयन कीजिए-
काव्यांश में तुच्छपत्र का कर्म क्या बताया गया है?
।. धुन में लगा रहना।
|| वसुधा पर छाया करना।
III. जीवन भर वर्षा सहना।
IV. अचर रहना।
रवि जग में शोभा सरसाता, पंक्ति में रवि शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
1. प्रकाश के लिए।
II. सोम के लिए।
III. व्यक्ति विशेष के लिए।
IV. सूर्य के लिए।
काव्याश में लघु-जीवन किसका बताया गया है?
। तुच्छ पत्र का।
II. सोम का।
III. तुच्छ तृण का।
IV. तन का।
'जिस पर गिर कर उदर दरी से तुमने जन्म लिया है, पक्ति का प्रयोग किसके लिए हुआ है?
|, मनुष्य के लिए।
|| जीवन के लिए।
III. तृण के लिए।
IV. उपरोक्त सभी के लिए।
'स्नेह की मूर्ति व दयामयि माता किसके लिए प्रयुक्त हुए है?
1.माता के लिए।
II. मही के लिए।
III. मनुष्यता के लिए।
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Answer:
यह पंक्ति 'रवि जग में शोभा सरसाता' का वर्णन सूर्य के लिए है।
Explanation:
काव्यांश में तुच्छपत्र का कर्म क्या बताया गया है?
। धुन में लगा रहना।
|| वसुधा पर छाया करना।
III. जीवन भर वर्षा सहना।
IV. अचर रहना।
उपर्युक्त चार विकल्पों में, काव्यांश में तुच्छपत्र के कर्म का वर्णन 'धुन में लगा रहना' के रूप में किया गया है।
रवि जग में शोभा सरसाता, पंक्ति में रवि शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
प्रकाश के लिए।
काव्यांश में तुच्छपत्र का कर्म क्या बताया गया है?
। धुन में लगा रहना।
रवि जग में शोभा सरसाता, पंक्ति में रवि शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है?
प्रकाश के लिए।
काव्याश में लघु-जीवन किसका बताया गया है?
IV. तन का।
II. सोम के लिए।
III. व्यक्ति विशेष के लिए।
IV. सूर्य के लिए।
यह पंक्ति 'रवि जग में शोभा सरसाता' का वर्णन सूर्य के लिए है।
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