1. (क) निम्नलिखित काव्यांश की सप्रसंग व्याख्या
कीजिए :
प्रभुजी, तुम चंदन हम पानी, जाकी अंग-अंग बास समानी।।
प्रभुजी, तुम घन बन हम मोरा, जैसे चितवत चंद चकोरा।।
प्रभुजी, तुम दीपक हम बाती, जाकी जोति बरै दिन
| राती॥
प्रभुजी, तुम मोती हम धागा, जैसे सोनहिं मिलत सोहागा।।
अथवा
कोई न छायादार
पेड़ वह जिसके तले बैठी हुई स्वीकार,
श्याम तन, भर बँधा यौवन,
नत नयन, प्रिय, कर्म-रत मन,
गुरु हथौड़ा हाथ,
करती बार-बार प्रहार,
सामने तरू-मालिका, अट्टालिका प्राकार।
Answers
Answer:
है प्रभु ! हमारे मन में जो आपके नाम की रट लग गई है, वह कैसे छूट सकती है ? अब मै तुमारा परम भक्त हो गया हूँ । जो चंदन और पानी में होता है । चंदन के संपर्क में रहने से पानी में उसकी सुगंध फैल जाती है , उसी प्रकार मेरे तन मन में तुम्हारा प्रेम की सुगंध व्याप्त हो गई है । आप आकाश में छाए काले बादल के समान हो , मैं जंगल में नाचने वाला मोर हूँ । जैसे बरसात में घुमडते बादलों को देखकर मोर खुशी से नाचता है , उसी भाँति मैं आपके दर्शन् को पा कर खुशी से भावमुग्ध हो जाता हूँ । जैसे चकोर पक्षी सदा अपने चंद्रामा की ओर ताकता रहता है उसी भाँति मैं भी सदा तुम्हारा प्रेम पाने के लिए तरसता रहता हूँ ।
है प्रभु ! तुम दीपक हो , मैं तुम्हारी बाती के समान सदा तुम्हारे प्रेम जलता हूँ । प्रभु तुम मोती के समान उज्ज्वल, पवित्र और सुंदर हो । मैं उसमें पिरोया हुआ धागा हूँ । तुम्हारा और मेरा मिलन सोने और सुहागे के मिलन के समान पवित्र है । जैसे सुहागे के संपर्क से सोना खरा हो जाता है , उसी तरह मैं तुम्हारे संपर्क से शुद्ध –बुद्ध हो जाता हूँ ।