1. केयूरा न विभूषयन्ति
2. केतकीगन्धमाघ्राय.
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षट्पदाः।
Answers
Answer:
केयूराः न विभूषयन्ति पुरुषं हारा न चन्द्रोज्ज्वला:।
न स्नानं न विलेपनं न कुसुमं नालङ्कृता मूर्धजा:।
वाण्येका समलङ्करोति पुरुषं या संस्कृता धार्यते।
क्षीयन्ते खलु भूषणानि सततं वाग्भूषणं भूषणम्॥
[[वर्गः: आ शार्दूलविक्रीड़तम्]
गुणाः कुर्वन्ति दूतत्वं दूरेऽपि वसतां सताम् |
केतकीगन्धमाघ्राय स्वयं गच्छन्ति षट्पदाः ||
- सुभाषित रत्नाकर (प्रसंग रत्नावली )
भावार्थ - सज्जन तथा गुणवान व्यक्ति यद्यपि जनसामान्य से
दूरी बनाये रहते हैं , लेकिन उनके गुण ही उन का दूत बन कर समाज
में उन की प्रसिद्धि कर देते हैं और लोग उनके पास उसी प्रकार खिचे
चले आते हैं जैसे कि केतकी के पुष्पों की सुगन्ध से आकर्षित हो कर
मधु मक्खियां स्वयं वहां पहुंच जाती हैं |
Explanation:
अर्थ:---- बाजुबन्द पुरुष को को शोभायमान नहीं करते हैं और ना ही चन्द्रमा के समान उज्जवल हार ,न स्नान,न चन्दन का लेप,न फूल और ना ही सजे हुए केश ही शोभा बढ़ाते हैं। केवल सुसंस्कृत प्रकार से धारण की हुई वाणी ही उसकी भली भांति शोभा बढ़ाती है साधारण आभूषण नष्ट हो जाते है परन्तु वाणी रूपी आभूषण निरन्तर जारी रहने वाला आभूषण