1 कण-कण का अधिकारी कविता पाठ का सारांश अपने शब्दो में
लिखिडा।
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प्रश्न : कण कण का अधिकारी कविता पाठ का सारांश लिखिए । ... सारांश प्रस्तुत कविता में भीष्म पितामह, कुरुक्षेत्र युद्ध से विचलित धर्मराज को आधुनिक समस्याओं के बारे में उपदेश देते हुए कहते हैं कि है धर्मराज । एक मनुष्य पाप के बल से धन इकटठा करता । तो दूसरा उसे भाग्यवाद के छल से भोगता है।
ड्र्.राम्धारि सिम्ह् दिनकर हिन्दि के प्रसिध् कवियों मे से एक् है।उनका जन्म् सन् 1908 मे मुगेर् मे हुआ तथा निधन् सन् 1974 मे हुआ।उर्वशी कुथि के लिये इन्हे ग्यन्पित् पुरस्कर् से सम्मनिथ् किया गया। रेनुक,कुरु क्षेत्र्,रशिमर्थि ,परसुरम् की प्रतिक्षा रसवन्ति आदि इनका प्रमुक् रचनाए है।
भीष्म कहते है कि हे धर्म् रज् !एक मनुज पाप के बल से धन कमाता है तो दुसरा उसे कर्म सिदान्त् के धन धोको से भोगता रहता है।श्रम और् भुजबल मनव -समाज का एक मात्र आधार तथा भग्य है।श्रम के सामने आसमान ,पुथ्वी सब ,आदर् से झुकजाते है।स्रम करने वाले को सुखो से वन्चित नही रहता चाहिए। जो पसीना निकालकर श्रम करता है उसे पीछे नही रहा देना चाहिए और जिसने श्रम कर इस प्रक्रुति पर् विजय पाया है सबसे पहले उसी को सुक पाना चाहिए।
प्रकृति मे जो भी वास्तु है वह सब मानव कि स.पदा है और कण-कण पर हर मानव का अधिकार है।श्रम से बढ़कर कोई मूल्यवान धन नहीं है श्रम के द्वारा ही सारी सम्पति होती है। लेकिन जो श्रम करता है उस सुख -भोगो से वनचित नहीं रहना चाहिए। श्रम करने से किसी को अभाव की शंका नहीं रहती।श्रम सबसे बड़ा धन है।
नीति:श्रम एक जयते