1-कवि द्वारा बच्चों के काम पर जाने की समस्या समाज के सामने क्यों लाई जा रही है?
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छब्बीस साल पहले संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में ‘बाल अधिकार समझौते’ को पारित किया गया था, जिसके बाद बच्चों के अधिकार को वैश्विक स्तर पर गंभीरता से स्वीकार किया जाने लगा..
जनसत्तानई दिल्ली | November 19, 2015 10:25 pm
Jansatta
चाइल्ड राइट्स एंड यू (क्राई) की रिपोर्ट के मुताबिक देश में 1.02 करोड़ बच्चे काम कर अपना जीवनयापन कर रहे हैं।
छब्बीस साल पहले संयुक्त राष्ट्र की आमसभा में ‘बाल अधिकार समझौते’ को पारित किया गया था, जिसके बाद बच्चों के अधिकार को वैश्विक स्तर पर गंभीरता से स्वीकार किया जाने लगा। इस समझौते की रोशनी में भारत में भी बच्चों के हक में कई नीतियां और कानून बनाए गए हैं। बच्चों और किशोरों की सुरक्षा, संरक्षण और देखभाल के लिए भारत सरकार द्वारा 2000 में किशोर न्याय अधिनियम लाया गया। यह एक प्रगतिशील कानून है। इसके तहत अठारह वर्ष से कम आयु के किसी भी बच्चे के साथ वयस्कों की तरह व्यवहार नहीं किया जा सकता है। उनके लिए अलग से न्याय व्यवस्था की गई है। इस कानून के दूसरे हिस्से में घर से भागे हुए, अत्यंत गरीब परिवारों के, अनाथ या छोड़े गए बच्चों के संरक्षण की व्यवस्था है। 2007 में केंद्र सरकार ने किशोर न्याय अधिनियम को मजबूती से लागू करवाने के लिए समेकित बाल संरक्षण योजना बनाई। अधिनियम के अनुसार देश के प्रत्येक जिले में एक बाल गृह हो, एक आश्रय गृह हो, एक देखरेख गृह हो, एक विशेष गृह हो। आश्रय गृहों और बाल गृहों में जरूरतमंद बच्चों को रखा जाता है।