1. मोकों कहाँ ढूँढे बंदे, मैं तो तेरे पास में।
ना मैं देवल ना मैं मसजिद, ना काबे कैलास में।
ना तो कौने क्रिया-कर्म में, नहीं योग बैराग में।
खोजी होय तो तुरतै मिलिहौं, पल भर की तालास में।
कहैं कबीर सुनो भई साधो, सब स्वाँसों की स्वाँस में।।
2. संतों भाई आई ग्याँन की आँधी रे।
भ्रम की टाटी सबै उड़ॉनी, माया रहै न बाँधी।।
हिति चित्त की वै यूँनी गिराँनी, मोह बलिंडा तूटा।
त्रिस्नाँ छाँनि परि घर ऊपरि, कुबधि का भाँडाँ फूटा।।
जोग जुगति करि संतों बाँधी, निरचू चुवै न पाँणी।
कूड़ कपट काया का निकस्या, हरि की गति जब जाँणी।
आँधी पीछे जो जल बूठा, प्रेम हरि जन भींनाँ।
कहै कबीर भाँन के प्रगटे, उदित भया तम खीनाँ।।
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1. ईश्वर कहाँ है और तुम उसे कहाँ ढूँढ रहे हो ? मैं जहाँ हूँ तुम वहां मुझे नहीं खोज रहे हो और तुम मुझे मंदिर मस्जिद में खोज रहे हो। ईश्वर किसी स्थान विशेष का नहीं है वरन तो इस श्रष्टि के कण कण में व्याप्त है। ना तो मैं मंदिर में हूँ और ना ही मस्जिद में, मैं ना तो काबे में हूँ और ना ही कैलाश में। ईश्वर को पवित्र और तीर्थ स्थानों पर ढूँढना मूर्खता है। किसी विशेष क्रिया कर्म से या वैराग्य धारण करने पर मुझे पाया जा सकता है। यदि कोई खोजने वाला हो तो मैं तो प्रत्येक सांस में मौजूद हूँ। तुम अंदर ढूंढो मैं अंदर ही हूँ। ऐसे ही बाबा बुल्ले शाह ने कहा की मंदिर मस्जिद में जा करके इश्वर को ढूंढ़ता है, जो अंदर बैठा है उसे कभी पकड़ा ही नहीं।
2. गुरु ज्ञान का जब प्रकाश होता है तब विषय विकारो का अँधेरा दूर हो जाता है। गुरु से प्राप्त ज्ञान की तीव्र धारा में भ्रम, माया और तृष्णा की टाटी (आश्रय ) उड़ जाता है। भ्रम और अज्ञान अब यहाँ नहीं रह सकता है। लोभ के खम्बे गिरने लगते हैं और मोह का बलिण्डा टूटने लग पड़ता है। जब तृष्णा को बांधे रखने वाले माया रूपी भंबे टूटने लग जाते हैं तो छान (छत ) टूटकर अंदर गिरती है और कुबुद्धि का भांडा फूटने लग जाता है। आंधी के पश्चात् होने वाली बरसात से (ज्ञान की बरसात ) से समय के साथ इकठ्ठा हो चूका कूड़ा करकट भी साफ़ हो जाता है। इस ज्ञान की बरसात में सभी ग्यानी जन भीग जाते हैं। ज्ञान के प्रकाश के कारन मोह माया का अँधेरा दूर होने लगता है। वस्तुतः इस शबद में कबीर साहेब ज्ञान की महिमा के बारे में बता रहे हैं और ज्ञान को आंधी का रूप देकर परिणामों के बारे में भी बता रहे हैं। ज्ञान की आंधी से अज्ञान का अँधेरा दूर हो जाता है और उसे प्रशय देने वाले तत्व जैसे तृष्णा, मोय और माया सब समाप्त हो जाते हैं।