1. 'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' पाठ का मूल भाव स्पष्ट कीजिए।
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'मानवीय करुणा की दिव्य चमक' संस्मरण है। इसके माध्यम से लेखक 'सर्वेश्वर दयाल सक्सेना ' फादर बुल्के को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। फादर बुल्के की भाषा और संस्कृति से बहुत गहरे जुड़े हुए थे। उन्होंने सदैव स्वयं को एक भारतीय कहा है। उन्होंने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने बके लिए बहुत योगदान दिया है। हम लोगो को फादर बुल्के के जीवन से यह संदेश लेना चाहिए की जब एक विदेशी अंजान देश , अंजान लोगो और भाषा को अपना बना सकती है तो हम अपने देश, अपने लोगो और भाषा को अपना क्यो नही बना सकते?
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