(1)
मेरे तो गिरधर गोपात, दूसरो न कोई।।
जाके सिर मोर मुकुट, मेरो पति सोई।
तात मात भ्रात बंधु. आपनों न कोई।।
टॉड़ि दई कुल की कानि, कता करे कोई।
सन्तन टिग वैठि-बैटि लोक-ताज खोई।।
चूनरी के किचे टूक, ओढ़ लोन्ही लोई।
नांतो मूंगे उतारि, वन-माला पो.।।
अंनुअन जल सींच-सींच, प्रेम बाल वोई।
अव तो बलि फैल गई आनन्द फल होई।।
प्रेन कीन्थनियाँ बड़े, जतन से विलोई।
वृत-वृत तव काढ़ि लियो, छाटपियो कोई।।
भगत देखि राजी भई, जगत देखि गई।
दासी नीरा लाल गिरधर, तारा अव मोही।।
मीराबाई
इसका भावार्थ क्या है।
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