Hindi, asked by ayush8077, 10 months ago

| 1. मीठी वाणी / बोली संबंधी व ईश्वर प्रेम संबंधी दोहों का संकलन कर चार्ट पर लिखकर भित्ति पत्रिका
लगाइए।​

Answers

Answered by bhatiamona
22

Answer:

दोहे में कबीर ने हिरण को उस मनुष्य के समान माना है जो ईश्वर की खोज में दर-दर भटकता है। कबीर कहते हैं कि ईश्वर तो हम सब के अंदर वास करते हैं , ईश्वर तो हर कण-कण में पाए जाते है| लेकिन हम उस बात से अनजान होकर ईश्वर को तीर्थ स्थानों के चक्कर लगाते रहते हैं और अपने अंदर मन को जानने की कोशिश नहीं करते |  

जैसे::::::::::::::::::::::::::::::::::::  

जिस प्रकार एक कस्तूरी हिरण कस्तूरी की खुशबु को जंगल में ढूंढता फिरता है जबकि वह सुगंध उसे उसकी ही अपनी नाभि में व्याप्त कस्तूरी से मिल रही होती है परन्तु वह जान नहीं पाता, उसी प्रकार इस संसार के कण कण में वह परमेश्वर विराजमान है परन्तु मनुष्य उसे तीर्थों में ढूंढता फिरता है ।

कबीर ने उपर्युक्त दोहे में वाणी को अत्यधिक महत्त्वपूर्ण बताया है।  महाकवि संत कबीर दस के दोहे में कहा गया है की हमे ऐसी मधुर वाणी बोलनी चाहिए जिससे हमें शीतलता का अनुभव हो और साथ ही सुनने वालों का मन भी प्रसन्न हो उठे।  मधुर वाणी से समाज में एक-दूसरे से प्रेम की भावना का संचार होता है। जबकि कटु वचनो से सामाजिक प्राणी एक-दूसरे के विरोधी बन जाते है।  इसलिए हमेशा मीठा और उचित ही बोलना चाहिए, जो दुसरो को तो प्रसन्न करता ही है और खुद को भी सुख की अनुभूति कराता है।

Answered by ts720148
16

Answer:

मीठी वाणी, ईश्वर, प्रेम से संबंधित दोहों का संकलन

ऐसी वाणी बोलिए मन का आपा खोय 

औरन को सीतल करे आपहु सीतल होय 

— कबीरदास

कागा काको धन हरै, कोयल काको देत

मीठा शब्द सुनाये के , जग अपनो कर लेत।

— कबीरदास

ते दिन गए अकारथ ही, संगत भई न संग |

प्रेम बिना पशु जीवन, भक्ति बिना भगवंत ||

— कबीरदास

प्रेम न बारी उपजे, प्रेम न हाट बिकाए |

राजा प्रजा जो ही रुचे, सिस दे ही ले जाए ||

— कबीरदास

पोथी पढ़ पढ़ जग मुआ, पंडित भया न कोय |

ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय ||

— कबीरदास

राम नाम की लूट है, लूट सके सो लूट

अंत काल पछतायेगा, जब प्रान जायेगा छूट।

— कबीरदास

रहिमन  पैड़ा प्रेम को, निपट सिलसिली गैल |

बिलछत पांव पिपीलिको, लोग लदावत बैल |

— रहीमदास

रहिमन धागा प्रेम का, मत तोड़ो चटकाय।

टूटे से फिर ना जुड़े, जुड़े गाँठ परि जाय॥

— रहीमदास

जब मैं था तब हरी नहीं, अब हरी है मैं नाही ।

सब अँधियारा मिट गया, दीपक देखा माही ।।

— कबीरदास

दुःख में सुमिरन सब करे, सुख में करे न कोय |

जो सुख में सुमिरन करे, तो दुःख काहे होय |

— रहीमदास

Read more on Brainly.in - https://brainly.in/question/9922481#readmore

Explanation:

Similar questions