Hindi, asked by sanvirana1208, 3 months ago

(1)
मैया मोरी! मैं नहिं माखन खायो।
भोर भए गैयन के पीछे, मधुवन मोहि पठायो।।
चार पहर बंसीबट भटक्यो, साँझ परे घर आयो।
मैं बालक बहियन को छोटो, छींको केहि विधि पायो।।
ग्वाल-बाल सब बैर पड़े हैं, बरबस मुख लपटायो।
तेरे जिय कछु भेद उपजि है, जानि परायो जायो।।
यह ले अपनी लकुटि कमरिया, बहुतै नाच नचायो।
सूरदास तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो।।
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Answered by nanditapsingh77
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श्यामसुन्दर बोले- `मैया ! मैंने मक्खन नहीं खाया है । सुबह होते ही गायों के पीछे मुझे भेज देती हो।चार पहर भटकने के बाद साँझ होने पर वापस आता हूँ।मैं छोटा बालक हूँ मेरी बाहें छोटी हैं, मैं छींके तक कैसे पहुँच सकता हूँ? ये सब सखा मेरे से बैर रखते हैं, इन्होंने मक्खन जबऱन मेरे मुख में लिपटा दिया। माँ तू मन की बड़ी भोली है, इनकी बातों में आ गई। तेरे दिल में जरूर कोई भेद है,जो मुझे पराया समझ कर मुझ पर संदेह कर रही हो। ये ले, अपनी लाठी और कम्बल ले ले, तूने मुझे बहुत नाच नचा लिया है। सूरदास जी कहते हैं कि प्रभु ने अपनी बातों से माता के मन को मोहित कर लिया. माता यशोदा ने मुसकराकर श्यामसुन्दर को गले लगा लिया ।

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Answered by akhan773261gmailcom
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Answer:

मैया मोरी! मैं नहिं माखन खायो। भोर भए गैयन के पाछे, मधुवन मोहि पठायो। चार पहर बंसीवट भटक्यो, साँझ परे घर आयो। मैं बालक बहियन को छोटो, छींको केहि विधि पायो। ग्वाल-बाल सब बैर पड़े हैं, बरबस मुख लपटायो। तू जननी मन की अति भोरी, इनके कहे पतिआयो। जिय तेरे कछु भेद उपजिहै, जानि परायो जायो। overline 48 लै अपनी लकुटि कमरिया, बहुतहि नाच नचायो। 'सूरदास' तब बिहँसि जसोदा, लै उर कंठ लगायो।।

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