1
मस्तक नहीं झुकाएँगे
(रामधारी हि "दिनकर" ने यह कविता भारत के वीर सपूतों को संबोधित करके लिखी है। ऋदि ने युद्ध पोदी का
अनुवागात करते हुए बताया है कि आज का नवयुवक गुणों में आपने पूर्वजों में किसी भी भीति कम नहीं है। वह अपने
देश की प्रगति के लिए मर मिटने को तैयार है।)
हम प्रभात की नई किरण है.
हम दिन के आलोक नवल।
हम नवीन भारत के सैनिक
धौर, वीर, गभीर अचल।
हम प्रहरी ऊँचे हिमाद्रि के
सुरभि स्वर्ग की लेते हैं।
हम है, शांति-दूत धरणी के.
छाँह सभी को देते हैं।
वीर-प्रसू माँ की आँखों के.
हम नवीन उजियाले हैं।
गंगा यमुना, हिंदमहासागर,
के हम रखवाले हैं।
हम है शिवा-प्रताप, रोटियाँ
भले घास की खाएँगे।
मगर किसी जुल्मी के आगे,
मस्तक नहीं झुकाएँगे।
-श्री रामधारी सिंह 'दिनकर'
answer fast
Attachments:
Answers
Answered by
0
She is my sister Itold her that answer
Similar questions