(1) नाच न जाने आँगन टेढ़ा।
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किसी कार्य की शक्ति ना होने पर दूसरों को दोष देना
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यह हिन्दी भाषा की बहुत प्रिय कहावत है" नाच न जाने आँगन टेढ़ा"। इसका यह मतलब होता है कि हम अपनी असफलताओं को स्वीकार नहीं करके उसका दोष दूसरों पर डालना चाहते हैं। जो बहादुर हो, वह अपनी गलतियों से सीखता है न कि दूसरों पर अपनी गलती डालता है। ऐसा इन्सान अपनी हार के लिए हमेशा बहाने बनाता है, लेकिन अपनी कमज़ोरी को समझ कर भी अनजान रहना चाहता है। इसी कहावत पर एक कहानी जो बच्चों की है, लेकिन हमें बहुत कुछ सिखाती है।
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