1.
निम्न लिखित पद्यांश की संदर्भ सहित व्याख्या कीजिए ।
कण-कण में है व्याप्त वही स्वर
रोम-रोम गाता है वह ध्वनि,
वहीन तान गाती रहती है
कालकूट फणि की चिंतामणि ।
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व्याख्या:- सृजन अर्थात निर्माण की आवश्यकता और आकांक्षा मनुष्य को स्वयं के अ ंदर से ही प्राप्त होती है। मनुष्य अपने आचरण, शील, श्रम, विवेक और कार्य संपादन की अभिलाषा से जो भी कार्य करेगा वे अवश्य ही पूर्ण होंगे।
अंधकार में प्रकाश का सृजन मनुष्य के द्वारा ही संभव है। गेहूं के उगते हुए पीताभ नन्हें पौधे यह संदेश देते हंै कि निंरतर सृजन अथवा निर्माण प्रकृति का शाश्वत नियम है।
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