1. निम्नलिखित अनुच्छेद को वर्तमान काल में लिखो फैसला सुनते ही जुम्मन सन्नाटे में आ गए। अलगू के फैसले की सभी लोग प्रशंसा कर रहे थे, लेकिन इस फैसले ने अलगू और जुम्मन की दोस्ती की नींव हिला दी। जुम्मन को यह फैसला आठों पहर खटकने लगा। वे इस ताक में थे किसी तरह अलगू से बदला लेने का अवसर मिले।?
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जुम्मन शेख़ और अलगू चौधरी में गाढ़ी मित्रता थी. साझे में खेती होती थी. कुछ लेन-देन में भी साझा था. एक को दूसरे पर अटल विश्वास था. जुम्मन जब हज करने गए थे, तब अपना घर अलगू को सौंप गए थे, और अलगू जब कभी बाहर जाते, तो जुम्मन पर अपना घर छोड़ देते थे. उनमें न खान-पान का व्यवहार था, न धर्म का नाता; केवल विचार मिलते थे. मित्रता का मूलमंत्र भी यही है.
इस मित्रता का जन्म उसी समय हुआ, जब दोनों मित्र बालक ही थे; और जुम्मन के पूज्य पिता, जुमराती, उन्हें शिक्षा प्रदान करते थे. अलगू ने गुरु जी की बहुत सेवा की थी, ख़ूब रकाबियां मांजी, ख़ूब प्याले धोए. उनका हुक्का एक क्षण के लिए भी विश्राम न लेने पाता था; क्योंकि प्रत्येक चिलम अलगू को आध घंटे तक किताबों से अलग कर देती थी. अलगू के पिता पुराने विचारों के मनुष्य थे. उन्हें शिक्षा की अपेक्षा गुरु की सेवा-शुश्रूषा पर अधिक विश्वास था. वह कहते थे कि विद्या पढ़ने से नहीं आती; जो कुछ होता है, गुरु के आशीर्वाद से. बस, गुरु जी की कृपा-दृष्टि चाहिए. अतएव यदि अलगू पर जुमराती शेख़ के आशीर्वाद अथवा सत्संग का कुछ फल न हुआ, तो यह मानकर संतोष कर लेगा कि विद्योपार्जन में उसने यथाशक्ति कोई बात उठा नहीं रखी, विद्या उसके भाग्य ही में न थी, तो कैसे आती?
मगर जुमराती शेख़ स्वयं आशीर्वाद के कायल न थे. उन्हें अपने सोटे पर अधिक भरोसा था, और उसी सोटे के प्रताप से आज आस-पास के गांवों में जुम्मन की पूजा होती थी. उनके लिखे हुए रेहननामे या बैनामे पर कचहरी का मुहर्रिर भी कलम न उठा सकता था. हलके का डाकिया, कांस्टेबिल और तहसील का चपरासी-सब उनकी कृपा की आकांक्षा रखते थे. अतएव अलगू का मान उनके धन के कारण था, तो जुम्मन शेख़ अपनी अनमोल विद्या से ही सबके आदरपात्र बने थे.
जुम्मन शेख़ की एक बूढ़ी खाला (मौसी) थी. उसके पास कुछ थोड़ी-सी मिलकियत थी; परन्तु उसके निकट संबंधियों में कोई न था. जुम्मन ने लम्बे-चौड़े वादे करके वह मिलकियत अपने नाम लिखवा ली थी. जब तक दानपत्र की रजिस्ट्री न हुई थी, तब तक खालाजान का ख़ूब आदर-सत्कार किया गया. उन्हें ख़ूब स्वादिष्ट पदार्थ खिलाये गए. हलवे-पुलाव की वर्षा-सी की गई; पर रजिस्ट्री की मोहर ने इन ख़ातिरदारियों पर भी मानो मुहर लगा दी. जुम्मन की पत्नी करीमन रोटियों के साथ कड़वी बातों के कुछ तेज़, तीखे सालन भी देने लगी. जुम्मन शेख़ भी निठुर हो गए. अब बेचारी खालाजान को प्रायः नित्य ही ऐसी बातें सुननी पड़ती थीं.
बुढ़िया न जाने कब तक जिएगी. दो-तीन बीघे ऊसर क्या दे दिया, मानो मोल ले लिया है! बघारी दाल के बिना रोटियां नहीं उतरतीं! जितना रुपया इसके पेट में झोंक चुके, उतने से तो अब तक गांव मोल ले लेते.