1.निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर दिए गए प्रश्नों के उत्तर लिखिए-
आज भावनाओं से संबंध रखनेवाली संस्कृति का मान नहीं रह गया है।आजकल केवल उपभोक्ता संस्कृति का महत्त्व बढ़ गया है।इसके प्रभाव से मनुष्य और इसकी भावना को भी एक चीज़ , एक वस्तु मान लिया गया है, जिसे कुछ पैसे देकर कोई भी खरीद सकता है।उसी तरह की मानसिकता निरंतर बढ़ती जा रही है। ईमानदारी और कर्तव्यपरायणता का कोई महत्व नहीं रह गया है।यदि कोई व्यक्ति ईमानदार रहकर अपने कर्तव्य का पालन करना चाहता है तो उसकी कीमत जानने की कोशिश की जाती है।कीमत देकर या लोभ लालच देकर उसे भ्रष्ट कर दिया जाता है। सरकारी विभागों में यदि भूल से कोई नियमानुसार कार्य करनेवाला व्यक्ति आ जाता है तो भ्रष्टाचारी लोगों को कहते सुना जाता है कि उसकी कीमत जानने की कोशिश करो या उसकी अधिक से अधिक कीमत लगाकर देखो, हर आदमी खरीदा जा सकता है।इस प्रकार कहा जा सकता है कि इस रुपयावादी या धनवादी दृष्टि ने व्यक्ति के धर्म-ईमान, कर्तव्यपरायणता आदि सबको निगल लिया है।सारी मानवता, मानवता की सारी व्यवस्थाओं को भ्रष्ट करके भीतर से खोखला और खाली बना दिया है।आज जो चारों ओर भ्रष्टाचार व काला बाज़ार का धंधा निरन्तर पनपता जा रहा है, उसका वास्तविक कारण रुपया है। रुपया पाने के लिए व्यक्ति अपने व्यक्तित्व और स्वाभिमान को बेचता है। धन मानवता के निरन्तर पतन का कारण बनता जा रहा है। कभी जिस रुपए-पैसों को हाथों का मैल समझा जाता था, आज वह सबकी आँखों का अंजन और तारा बन गया है। इसे मानवता के विकास के लिए शुभ नहीं माना जा सकता।
(क) उपरोक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए तथा गद्यांश से निहित संदेश लिखिए-
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'अनेतिक्ता तथा भ्रष्टाचार ' शीर्षक
आज के आधुनिक युग में लोग मानवता को भूल गाएं हैं। भ्रष्टाचार चरम पर है। ईमानदार व्यक्ति का कोई महत्व नहीं रह गया है। आज मानव धन को ही अधिक महत्व दे रहा है और उसे पाने के लिए अपना व्यक्तित्व और स्वाभिमान तक बेच रहा हैl
इसे मानव संस्कृति के विकास के लिए उचित नहीं कहा जा सकता।
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