Hindi, asked by megahomes71, 7 months ago

1. निम्नलिखित गद्यांश को पढकर प्रश्नों के उत्तर लिखिए
(10)
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चाणक्य के अनुसार, हमें इन तीनों उपक्रमों में कभी संतोष नहीं करना चाहिए - 'त्रिषु नैप कर्तव्यः विद्याया जप
दानयोः । अर्थात् विद्या अर्जन में कभी सतोष नहीं करना चाहिए। इसी तरह जप और दान करने में भी संतोच नहीं
करना चाहिए। सतोष को महत्व देते हुए कहा गया है कि 'जब आवे संतोष धन, सब धन धूरि समान। हमें जो
प्राप्त हो उसमें ही संतोष करना चाहिए।
'साई इतना दीजिए जाम कुटुंब समाय। मैं भी मूखा न रहूँ , साणु न मूखा जाए।। अर्थात सतोष रामसे पला धन
है। जीवन में संतोष रहा , शुद्ध सात्विक आचरण और शुचिता का भाव रहा तो हमारे मन के सगी विकार दूर
हो जाएंगे और हमारे अंदर सत्य निष्ठा प्रेम, छदारता दया और आलीयता की गंगा बाने लगेगी। जाज के
मनुष्य की सांसारिकता में करती लिप्तता. पैश्विक बाजारवाद और भौशिकता की चकामीच के कारण संत्रास , कुंठा
और असंतोब दिन प्रतिदिन बढ़ता ही जा रहा है। इसी असंतोष को दूर करने के लिए संतोषी पनगा आवश्यक
हो गया है। सुखी और शांतिपूर्ण जीवन के लिए सताब औषधि है।
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प्रश्न
(2)
(क) चाणक्य किन उपक्रमों में संतोष न करने की सीख देते। और क्यों ?
(ख) 'साई इतना दीजिए
साधू न भूखा जाए।' का आशय स्पष्ट कीजिए।
(ग) किस धन के मिलने से सारे धन धूलि के समान हो जाते है और क्यों ?
(घ) मनुष्य का संतोषी होना आवश्यक हो गया है, क्यों?
(2) answer​

Answers

Answered by MEGAVARTHINI
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Answer:

ටිකක් විතර ළඟින් යන අතරේ ඔහු සමඟ කතා කරන්න පුළුවන් කියලත් ඔප්පු කරල තියෙන්නෙ කියලා මට හිතෙනවා වෙලාවකට

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